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०प्र०
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SAHASRKIRIKAARYAASANSAKINESS
ध्यानस्य मूलं च सर्वस्य साधकं हि तत् ॥॥ सूक्ष्म तत्वं जिनेन्द्रस्य केवलज्ञानगोचरम । मनोक्षगोचरं नैव इष्ट तत्सर्व|दर्शिभिः ॥६॥ सर्वशेन प्रणीतेऽस्मिन् तत्त्वे सूक्ष्मे जिनशिना । प्रत्यक्षेण परोक्षेण बाधा काचिन्न विद्यते ॥१०॥ कुवादिभिरनुल्लंघ्यं न्यूनाधिकविवर्जितम् । संशयविपरीता ददविरोहतं परम् ॥११॥ सत्यं प्रमाणभूतं तम् तत्त्वं विद्धि सुनिश्चितम् । जिनाझापूर्वक तस्य तत्त्वस्य मननं शुभम् ॥१२॥ एकाप्रमनसा तव श्रद्धापूर्वकचिन्तनम् । तदाझाविचर्य ध्यान सर्वकर्मक्षयंकरम् ।।१३॥ धर्माज्ञा विविधा ग्रोक्ता लौकिका पारमार्थिका । जिनेन वीतरागेण सर्व लोकहिताय वै ॥१४॥ लौकिकाचरणे वाज्ञा यारशी प्रतिपादिता । सा तथैवेति नान्या वा चिन्तयेच्छुद्धयाम्वितः ॥१५|| श्रीमत्सर्वशदेवस्य सुभावतोऽहतो ननु । सर्वथा हि निसवा निर्दोषं विगतभ्रमम् ॥१६|| शासन त्रिजगत्पूज्यं सत्यरूपं नामका ध्यान मुख्य है। यह समस्त धर्मध्यानोंका मूल है और सबका साधक है ॥८॥ भगवान जिनेन्द्रदेवक
कहे हुए तत्व अत्यन्त सूक्ष्म हैं, वे केवल ज्ञानगोचर हैं, इन्द्रिय और मनके गोचर नहीं हैं। परंतु भगवान या सर्वज्ञदेवने उन सबको देखा है। भगवान जिनेन्द्रदेव सर्वज्ञने जिस सूक्ष्म तत्वका निरूपण किया है, उनमें प्रत्यक्ष | | वा परोक्ष प्रमाणसे कभी बाधा नहीं आ सकती है, वादी प्रतिवादी कोई भी उसका उल्लंघन नहीं कर
सकता, उन तत्त्वोंका जो स्वरूप है, वह न तो कम है और न अधिक है, तथा संशय, विपरीत आदि सब | दोषोंसे रहित हैं । वह तत्वोंका स्वरूप यथार्थ है, प्रमाण है और सुनिश्चित है, ऐसा तुम समझो। उन सब तत्वोंका भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञानुसार मनन करना, एकाग्र मनसे चितवन करना वा श्रद्धापूर्वक उनका चितवन करना आज्ञाविचय नामका धर्मध्यान कहलाता है । यह धर्मध्यान समम्त कमाका नाश करनेवाला है ॥९-१३॥ भगवान वीतराग सर्वज्ञ देवने समस्तलोगोंका हित करने के लिये वह धर्मकी आज्ञा भी लौकिक और पारमार्थिकके मेदसे अनेक प्रकारकी बतलाई है ।।१४।। भगवान जिनेन्द्रदेवने लौकिक आचरण पालन करनेके लिये जैसी आज्ञा प्रतिपादन की है, वह उसी तरह से है। अन्य प्रकारसे नहीं है, इसप्रकार | भव्य जीवों को श्रद्धापूर्वक चितवन करते रहना चाहिये ॥१५॥ अंतरंग-हिरंग लक्ष्मीसे सुशोभित अरहंतदेव भगवान सर्वज्ञदेवका शासन बाधाओंसे सर्वथा रहित है, निर्दोष है, भ्रमरहित है, तीनों लोकोंमें पूज्य है, | यथार्थ है और पापरहित है। ऐसे जिनशासनको जो सुनता है, विश्वास करता है, रुचि करता है,