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चिकल्मषम् । तत्प्रत्येति शृणोत्यत्र रोचते श्रद्दधाति च ॥१७॥ ध्यायति चिन्तयत्येवं विचारयति मन्यते । तदाज्ञाविवयं ध्यानं कथितं हि जिनागमे ||१८|| अविरुद्ध जिनाशायाश्चिन्तनं मननं तथा । रोचनं स्पर्शनं चैव ह्याज्ञादिचयमुच्यते १६ ॥ द्रव्यपर्याय संयुक्तं तत्रं श्रीजिनभाषितम् । श्रीजिनाज्ञाप्रमाणेन तदुद्ध्यायेश्चिन्तयेत्सुधीः ||२०|| या या शुद्धिव पिण्डादेवता श्रीजिनागमे । श्रीजिनामाप्रमाणेन तत्तथेति हि चिन्तयेत् ॥ २२॥ प्रवर्तयेव तां भावाद् भूयो भूयो विचारये तू सदाज्ञाविचयं ध्यानं जिनाज्ञाद्योतनं परम् ||२२|| अनादिकालतोऽत्राई बम्भ्रमीति भवाये । न चिन्तिता मया क्यापि जिनाशा परदेवता ||२३|| इति चिन्तां समालम्ब्य चैकामेन त्रियोगतः । जिनाझाचिन्तनं श्रद्धाभरेण शुद्धभावतः ||२४|| तदाज्ञाविचर्य ध्यानं सर्वसिद्धिकरं मतम् । आज्ञाया विचयं ध्यानं तदाज्ञाविवयं मतम् ||२५|| जिनशासनमाहात्म्यं कथं
श्रद्धान करता है, ध्यान करता है, चितवन करता है, विचार करता है, और मानता है उसको जैन शास्त्रोंमें आशा विषय नामका धर्मध्यान कहते हैं ।।१६ - १८ । । भगवान जिनेन्द्रदेव की आज्ञा के अविरुद्ध चितवन करना, मनन करना, रुचि करना और स्पर्श करना आज्ञाविषय नामका धर्मध्यान कहलाता है ॥ १९ ॥ भगवान जिनेन्द्रदेवने द्रव्यपर्याय सहित जो तवोंका स्वरूप बतलाया है, उसको भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञानुमार बुद्धिमान पुरुषोंको चितवन करना चाहिये और ध्यान करना चाहिये। जैनशास्त्रों में पिंडादिककी जो जो शुद्धियां त लाई हैं । उनको भगवान जिनेन्द्रदेव की आज्ञानुसार उसीप्रकार चितवन करना चाहिये, भावपूर्वक उसीप्रकार उनकी प्रवृत्ति करनी चाहिये और बार बार उनका चितवन करना चाहिये । इसीको आज्ञा विचय नामका धर्मध्यान कहते हैं । यह आज्ञाविचय ध्यान भगवानकी आज्ञाका उद्योत करनेवाला है और सर्वोत्कृष्ट है ॥२०-२२ || इस संसाररूपी समुद्र में अनादि कालसे परिभ्रमण कर रहा हूँ, मैंने आजतक भगवान जिनेन्द्र देव की आज्ञारूपी उत्कृष्ट देवताका कभी चिन्तन नहीं किया। इसप्रकारके चिन्तवनका अवलंबन लेकर मन वचन काकी एकाग्रता से श्रद्धापूर्वक शुद्धभावोंसे भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाका चिन्तन करना आज्ञावित्रय नामका धर्मध्यान कहलाता है । यह धर्मध्यान समस्त अथोंकी सिद्धि करनेवाला है, भगवानकी आज्ञाका विषय अर्थात् ध्यान करना आज्ञाविचय कहलाता है ॥२३ - २५॥ इस समस्त पृथ्वीपर जिनशासनका माहात्म्य किसप्रकार वृद्धिको प्राप्त हो, इसप्रकारके चितवनपूर्वक जिनशासनके माहात्म्यका चिन्तवन
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