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4॥११॥
वियोगजम् । दुःखोदवं निदानं पवाथ्यानं चतुर्विधम् || रत्यरतिकुभावेन मायाचारेण दुःखतः।मनोऽतविषयार्थ हि प्राणिना क्रियदे मुदा विषयाऽऽभोगकांचभिः परवस्तु च चिन्त्यते । आध्यानं भवेदत्र संसारचक्रवर्द्धनम || पुत्रमित्रकलत्रादिधनधान्येष्टसम्पदाम् । रम्यानां परवस्तूनां मनोज्ञसुखदायिनाम् ॥१०॥ वियोगे हि कथं तेषां शोधं स्याष समागमः। इति चिन्तापरत्वेन चैकाप्रेन च चिन्तनम् ॥११॥ इष्टवियोगजं चातध्यान दुःखकरं मतम् । तस्मादात परित्याज्यं मुक्तीच्छेन हितैषिण ॥१२॥ सर्पशत्रुविषादीनां दुःखपीडाकरात्मनाम् । अवृष्टिराजचौराणां दारिद्रभूतशाकिनाम् ॥१२॥ संयोगे खलु मे तेषां कथं स्याश्च निवर्तनम् । इति चिन्तापरत्वेन अनिष्टयोगहानये ॥१॥ चिन्तन हि काममनसा हि पुनः पुनः । अनिष्टयोगजं पातं दुर्गतेदायर्क परम् ॥११॥ रोगाच्छोकाद्भयात्क्लेशाद्धननाशाच्च
हा प्रकारका है-इष्ट पदार्थोके वियोगसे उत्पन्न हुआ आतध्यान, अनिष्ट पदार्थोके संयोगसे उत्तम हुआ आर्तध्यान,
दुःखोंसे उत्पन्न हुआ आर्तध्यान और निदानसे उत्पन्न हुआ आतध्यान ॥७॥ यह आर्तध्यान रति और अरति| रूप अशुभ परिणामोंसे तथा मायाचारसे मन और इन्द्रियों के विषयों की सिद्धि के लिये दुःखपूर्वक प्राणियोंके है
द्वारा किया जाता है |८|| इस आध्यानमें विषय और भोगोंकी इच्छासे पर वस्तु का चितवन किया जाता है, | इसे ही संसाररूपी चक्रको बढ़ानेवाला आर्तध्यान कहते हैं ॥९॥ पुत्र, मित्र, स्त्री और धन-धान्य आदि जो जो
इष्ट संपदाएं हैं, जो जो मन और इंद्रियों को सुख देनेवाली मनोहर वस्तु हैं। उनका वियोग होनेपर शीघ्र ही | उनका समागम कैसे हो ? इस प्रकारकी चिन्तासे जो एकाग्रचित्त होकर चिंतन करना है, उसको इष्ट-वियोगज | आर्तध्यान कहते हैं, यह आतंभ्यान महादुःख देनेवाला है । इसलिये मोक्ष की इच्छा करनेवाले और आत्माका | हित चाहनेवाले भव्य जीवोंको इस आध्यानका अवश्य त्याग कर देना चाहिये ॥१०-१२॥ दुःख |
और पीड़ा उत्पन्न करने वाले सर्प, शत्रु, विप, अनावृष्टि, राजा, चोर, दरिद्रता, भूत, पिशाच और शाकिनी आदि अनिष्ट पदार्थोंका संयोग होनपर उनका नाश कम होगा ? इस प्रकारकी चिन्तामें तत्पर होकर उस अनिष्टको दर | करनेके लिये एकाग्र मनसे बार बार चितवन करना अनिष्टसंयोगज नामका झरा आर्तध्यान कहलाता है।
यह आतध्यान मी महाअनिष्ट दुर्गतियों को देनेवाला है ॥१३-१५॥ किसी रोगसे, शोकसे, भयसे, | क्लेशसे, धनके नाशसे, शत्रुसे, राज्यसे, भाई वा स्त्रीसे, अनिमें पढ़नेसे अथवा और किसी तरहसे अनेक Ho