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Nमानात पितरं द्वेटि मानाद्धर्म निन्दति । मानात्करोति या स दुःखद न्यायवर्जितम् ॥६५॥ मानेन नरकं याति
रावण इव मानवः । मानं हिचापदां स्थान भएडकलहकर्मणाम् ॥६६॥ मानं दुर्गतिदातारं धर्मविध्वंसकं तथा । मूदो जनो विधत्तेऽत्र विवेकविकलोऽथवा ॥६७। तंगं मानाद्रिमारण विवेकविकलो नरः । करोति धर्मनाशाय पूज्यापूज्यव्यतिक्रमम् ॥६८। मानेन नश्यते शीघ्र विवेको हितरूपकः । विवेके च गते किं स्यादुध्यानं शर्मविधायकम् ॥६॥ बोधनेत्रमपाकृत्य
पुरस्कृत्याविवेककम् । धर्मध्वंसं करोत्यात्मा मानेन मष्ट चेतनः ॥७॥ यः स्वमानं पुरस्कृत्य विधत्ते कर्म निन्दितम् । Ji स्वयं पतति भूगर्भ पातयति परानपि ॥७॥ तस्मान्मानं त्यजेद्धीमान मार्दवं धारयेसुधीः । वात्सल्यभावनांपेतो धर्म
कुर्याश्च तत्ववित् ||२|| मार्दवेन गुणा: सर्व मानेन सन्ति दुर्गणाः | मार्दवेन शिवप्राप्तिः मानेन स्याच दुर्गतिः ।।७३ । मार्दवं सुखमूलं हि वात्सल्यगुणकारकम् । ध्यानं जपस्तपस्तेन शीघ्र सिद्धपत्ति मोक्षदम् ।।७४|| मोनो हि लभ्यते येन
है। है और अमिमानसे ही न्यायरहित दुःख देनेवाले पापोंको करता है ॥६५॥ यह मनुष्य अभिमानके कारण RS| रावणके समान नरकमें जाता है, तथा यह अमिमान अनेक आपत्तियों का स्थान है और भंड वचन तथा कलह | आदि कार्योंका स्थान है ॥६६॥ दुर्गतिको देनेवाले और धर्मको नाश करनेवाले इस अभिमानको विवेकरहित मूर्ख लोग ही धारण करते हैं ॥६७|| विवेकरहित यह मनुष्य मानरूपी ऊँचे पर्वतपर चढ़कर धर्मका नाश करने के लिये पूज्य और अपूज्य पुरुषोंका व्यतिक्रम करता है ॥६८। इस अमिमानसे हित करनेवाला विवेक शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, तथा विवेकके नष्ट हो जानेपर कल्याण उत्पम करनेवाला ध्यान भला कैसे हो सकता | है ? ॥६९।। जिसकी ज्ञानरूप चेतना नष्ट हो गई है, ऐसा आत्मा अपने अभिमानके कारण ज्ञानरूपी नेत्रको | हटाकर और अविवेकको सामने रखकर धर्मका नाश कर डालता है ॥७०॥ जो पुरुष अपने अमिमानको सामने रखकर निंदनीय कर्म करता है, वह नरकरूप पृथ्वीके गढ़में स्वयं गिरता है और दूसरोंको मी डालता है ॥७१।। इसलिये तच्चोंको जाननेवाले बुद्धिमान् पुरुषोंको वात्सल्य-भाव धारणकर अभिमानका सर्वथा त्याग कर
देना चाहिये और मार्दवधर्म धारण करना चाहिये ॥७२॥ इस मार्दव धर्मसे समस्त गुण प्राप्त होते हैं, और अभिमानसे | | सब दुर्गुण प्राप्त होते हैं । मार्दवधर्मसे मोक्षकी प्राप्ति होती है और अभिमानसे दुर्गति प्राप्त होती है ॥७३॥ यह मादेवधर्म | सुख देनेवाला है और वात्सल्य गुणको प्रगट करनेराला है । इस मार्दव धर्मसे ही मोक्ष देनेवाला ध्यान, जप और