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एकादशोऽधिकारः।
8.प्र०
मा
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१॥
सदाचारप्रणेतारं तपासमितिपालकम् । भावभक्त्या हई बन्दे शीतलं तंजिनेश्वरम् ॥१॥ समित्यादिधरो धीरस्तपश्चरणतत्परः । करोति मुनिनाथोऽसौ कर्माद्रिचूर्णनं ननु || पंचमहानताना हि न स्यात्सम्यक प्रपालनम् । समित्यादेविना स्वापि न भूतो न भवष्यति ॥३॥ तस्मात्तेषां स्वरूपोऽत्र संक्षेपारयते मया । आगमेभ्यो विशेषं तत् ज्ञातव्य मुनिसत्तमैः र्याभाषणादाननिक्षेपोत्सर्गसक्रियाः । पंच समितयः प्रोक्ता जिनागमे जिनेश्वरैः ॥३॥ जीवरक्षासुभावेन दया चित्तेन संयनी । दिवा सूर्योदये सम्यमार्जिते पथि सत्तमे ॥६॥ गमनं तीर्थयात्रार्थ वंदनार्थ शुरूनपि । करोति सृष्टिशुद्धया हि सेर्यासमितिरुच्यते ॥ सर्वजीवहित वाथ सर्वकल्याणकारकम् । हितं मित ___ जो सदाचारको निरूपण करनेवाले हैं और तप तथा समितियोंको पालन करनेवाले हैं, ऐसे मपवान |
शीतलनाथको मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ ॥१॥ बो मुनिराज समितियोंका पालन करते हैं, धीरवीर हैं | और तपश्चरण करनेमें तत्पर हैं, वे ही मुनि कर्मरूपी पर्वतको चूर चूर कर डालते हैं ॥२॥ इन समितियोंको |
पालन किये तिना पांचों महावतोंका अच्छी तरह पालन न तो आज तक हुआ है और न कभी हो सकता | है ।।३।। इसलिये मैं अब उन समितियों का स्वरूप अत्यन्त संक्षेपसे कहता हूँ । मुनिराजोंको इनका विशेष | का स्वरूप आगमसे जान लेना चाहिये ॥४॥ भगवान जिनेन्द्रदेवने जिनागममें "ईर्यासमिति, भाषासमिति |
एषणासमिति, आदाननिक्षेपणममिति और उत्सर्गसमिति" ये पांच समितियां बतलाई हैं ॥५|जो संयमी | जीवोंकी रक्षा करनेके भावसे अथवा दया धारणकर दिनमें सूर्योदय के बाद दले मले उत्तम मार्गमें नेत्रोंसे चार हाथ भूमिको शुद्ध करता हुआ तीर्थयात्राके लिये अथवा गुरुओंकी बन्दना करनेके लिये गमन करता है, | उसको ईर्यासमिति कहते हैं ॥६-७॥ जीवोंकी रक्षा करने में सदा तत्पर रहनेवाला जो साधु सब जीवोंका
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