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संरोधकं वा । इह भवति सुधर्मा शास्त्रसंलीनचित्तः ||२६||
इति सुधर्मध्यानप्रदीपालंकारे मनोवशीकरण प्ररूपखो नाम दशमोऽधिकारः ॥
और निरंतर तीव्र पाप उत्पन्न करता रहता है, इसलिये भव्य जीवोंको शुभभावोंसे वित्तको वश में कर लेना चाहिये, जिससे कि शास्त्रों में चित्तको लगानेवाला श्रेष्ठधर्म प्राप्त हो ||२६||
इसप्रकार मुनिराज श्री सुधर्मसागरप्रणीत सुधर्मध्यानप्रदीपालंकार में मनको वश करनेका उपदेश देने वाला यह दशयां अधिकार समाप्त हुआ ।
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