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________________ चतुर्थोऽधिकारः ७ हे भद्र ! मेरे द्वारा कहे हुए अन्य वचनों को अब सुनो ! जिन दोनों का समान धर्म और ( जिन दोनों का ) समान कुल होता है ॥ ९७ ॥ उन दोनों में मंत्री और विवाह होता है । सम्पन्न और असम्पन्न में मैत्री और विवाह नहीं होता है। हम दोनों के सम्बन्ध से भी यह श्लोक सत्य हो गया है || ९८ ॥ ऐसा कहकर श्रीधर नामक ज्योतिष शास्त्र सम्पन्न विद्वान् को बुलाकर सम्मान देकर वणिक बोला ॥ २९ ॥ तुम विवाह के योग्य शुभ लग्न बतलाओ । वह व्यवहार सज्जनों को मान्य होता है जो भव्य जीवों को शुभ होता ।। १०० ॥ वह बोला - समस्त दोषों से रहित वसन्त मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि निकट है ॥११०१११ तिथि की पूर्णता पर जो बुद्धिमान् विवाह करता है, उसका घर पुत्ररत्न और समृद्धियों से पूर्ण होता है ॥ २०२॥ अनन्तर परम आनन्द से भरे हुए उन दोनों वणिक पतियों ने सुख के घर जिनमन्दिर में पहले पञ्चामृत से जगत्सृज्य जिनेन्द्र का महान् अभिषेक किया और जलादि से सुखकारी महापूजा की ॥११०३-१०४ ॥१ 112 अनन्तर उन दोनों ने चित्त को विशेष अनुरंजित करने वाले खंजनों ( खंजन एक विशेष प्रकार की चिड़िया) से युक्त बड़े- बड़े स्तम्भों से ऊँचा सार वस्त्रादि से युक्त, पुष्पमाला से सुशोभित, सज्जनों के चित्त को हरने वाला, पवित्र, लक्ष्मी के विस्तृत निवास के समानपूर्ण कुम्भादि से युक्त उत्तम वेदी, सुशोभित ध्वजा से युक्त, स्त्रियों के संगीत की ध्वनि और बाजे से सुशोभित लोगों के महादान के प्रवाह से कल्पवृक्ष के समान, केले के स्तम्भों से युक्त, सुन्दर तोरणों से सुशोभित दिव्य मण्डप बनाकर कुल स्त्रियों से मनोहर मङ्गल स्नान कराकर, वस्त्र और आभूषण के समूह तथा माला, ताम्बूल आदि से युक्त शची और इन्द्र के समान पवित्र वधू और वर को महोत्सवों के साथ सुन्दर, पवित्र मन्दिर में लाकर वेदी में बैठाकर, फूल और गोले चावल आदि से सुमानित, जैन पण्डित के द्वारा कहे हुए होम जप आदि से || १०५ - १११ ॥
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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