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________________ चतुर्थोऽधिकारः अनन्तर वह बालक नित्य पिता के मनोहर घर में यथा सुख वृद्धि को 'प्राप्त करता हुआ स्त्रियों के हाथों लालित होता हुआ, उत्तम प्रीति को उत्पन्न करता हुआ द्वितीया के चन्द्रमा के समान सुशोभित हुआ । सच ही है. सुपुण्य से संयुक्त किसके लिए सुखदायक नहीं होता है ।। १-२॥ वह बालक दिव्य आभरण और उत्तम वस्त्रों से भूषित होकर सुशोभित हुआ। कोमल कल्पवृक्ष नित्य सज्जनों को आनन्दित करने वाला होता है ॥ ३॥ वह बालक नित्य दिव्य महोत्सवों व पवित्र पुण्य संबल से युक्त हुआ। संसार में उत्तम प्रौढ़ बालक विशेष रूप से शोभित होता है ।। ४ ।। पुत्र सज्जनों का सामान्य रूप से भी सुख रूप होता है ( फिर ) । जो भव्य मुक्तिगामी होता है, उसका संसार में क्या वर्णन किया जाय ? ।। ५ ।। ___ अत्यधिक पवित्र वह मस्तक पर काले केशों के ममुह से सुशोभित हुआ। अथवा यहाँ बिकास को प्राप्त होता हुआ चम्पा का वृक्ष भौरों से आश्रित हुआ ।। ६ ।। उसका ललाट स्थान उन्नत, विस्तीर्ण और निर्मल था। वह राजा के पूर्व पुण्य का निवास स्थान हो, इस प्रकार सुशोभित हुआ ।। ७ ॥ सुयश की स्थिति को कहने वाली उसकी सुगन्ध के विलास को प्रकट करने वाली तोते की चोंच के समान उन्नत नासिका सुशोभित थी ।। ८॥ साररूप कमल पत्र के समान उसके दोनों नेत्र सुशोभित होते थे। उसका वर्णन करने में वही समर्थ है, जो आगामी केवलज्ञान रूपी नेत्र बाला है ।। ९॥ रत्नकुण्डल से शोभित उसके दो कान संलग्न थे। वे सरस्वती और यशोदेवी की क्रीडा के छाले के समान थे।॥ १०॥ चन्द्रमा नित्य दोषाकर ( दोषों की खान, रात्रि की खान, रात्रि को करने वाला ) सकलङ्क और नष्ट हो जाने वाला होता है। कमल जल का अश्रय लेता है जड़ के आश्रित होता है । अतः उसका मुख उनको जीत लेता था ॥ ११ ॥ ___निर्मल ध्वनि बाला उसका कण्ठ नित्य तीन रेखाओं से विराजित होकर सुशोभित होता था। वह लक्ष्मी, विद्या और आयु को प्राप्ति का सूचक था ॥ १२ ॥
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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