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________________ तृतीयोऽधिकारः जहाँ पर दण्ड शब्द केवल छत्र में ही है, प्रजा जहाँ की न्यायमार्ग में प्रवृत्त रहती है तथा राजा निर्लोभी है, अतः प्रजाओं में दण्ड शब्द नहीं है ।। १४॥ हस्ति आदि में पाया जाने वाला दमन जहाँ तपस्वियों के तप और इन्द्रियों में ही विद्यमान है। दुष्टबुद्धि के कारण किसी का दमन नहीं होता है ।। १५ ।। दोषाकरत्व ( रात्रि का करना ) चन्द्रमा में है, प्रजा में नहीं । जहाँ बन्धन पुष्प में और अत्यधिक रोक दुर्मनों पर ही है ।। १६ ।। जहाँ पर मिथ्यात्व को हालाहल के समान जानकर प्रजायें जिनभाषित सद्धर्म का पालन करती हैं |॥ १७ ॥ प्रजा पात्रदान, जिनेन्द्र अर्चा, व्रत, गुणोज्ज्वल शील उपवासपूर्वक अत्यधिक रूप से कर जहाँ हित का साधन करती हैं ।। १८ ।। ___ जहाँ पर पुष्प और फलों से नम्र, सबको तृप्त करने वाले घने, अच्छे वन सुशोभित होते हैं अथवा भन्यों के पुष्प और फलों से नम्र, सबको तृप्त करने वाले, घने, अच्छे कुल सुशोभित होते हैं ॥ १९ ॥ जहाँ पर कमलों के समुह से समन्वित, विस्तीर्ण और ताप को नष्ट करने वाले स्वच्छ जलाशय हैं। उनकी उपमा सज्जनों के मन से दी जा सकती है। सज्जनों के मन भी स्वच्छ, लक्ष्मी से समन्वित, विस्तीर्ण और ताप को नष्ट करने वाले होते हैं ॥ २० ॥ ____ जहाँ पृथ्वी पर समस्त धान्यों से भरे हुए और दरिद्रता का विनाश करने वाले खेत अथवा भव्यों के समूह सुशोभित हैं ।। २१ ॥ जहाँ सदा गोल-गोल, विशाल और तृषा के ताप को हरने वाले तालाब प्रसन्नतापूर्वक सज्जनों के चित्तों के समान सुशोभित होते हैं। सज्जनों के चित्त भी अच्छे आचरण वाले { सुवृत्त ) विशाल और तृषा के ताप को हरण करने वाले होते हैं ।। २२ ।। __ जहाँ पर पूर्व पुण्य की कृपा से धन, धान्य और जनों से पूर्ण, जिनधर्म परायण भव्य रहते हैं ।। २३ ॥ जहाँ पर रूप, सम्पत्ति और गुणों से युक्त नारियाँ अनुत्तर चार प्रकार के ( सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र और सम्यक रूप ) उत्तम धर्म का आचरण करती हुई सुशोभित होप्तो हैं ॥ २४ ॥ जहाँ पर नगर, ग्राम और वनादि में जिनेन्द्र की प्रतिमाओं से युक्त सुमनोहर प्रासाद सुशोभित होते हैं ।। २५ ॥
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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