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भूमिका सुदर्शनचरित में मुनि श्री सुदर्शन का चरित्र विद्यानन्दि ने संस्कृत काव्य के रूप में प्रस्तुत किया है । जैन परम्परा के अनुसार सुदर्शन भगवान् महावीर के पांचवें अन्तकृत् केवली हुए । उन्होंने कठिन तपश्चरण किया, घोर उपसों को सहा और अन्त में मोक्ष की प्राप्ति की । धवला में कहा गया है
___ अष्टकर्मणामन्तं विनाश कुर्वन्तीति अन्तकृतः। अन्तकतो भूत्वा सिझंक्ति सिद्ध्यन्ति निस्तिष्ठन्ति निष्पद्यले स्वरूपेण इत्यर्थः । बुज्झत्ति त्रिकालगोचरानन्तार्य व्यन्जनपरिणामात्मकावशेष वस्तु सत्त्वं बुद्धयन्ति अधगच्छन्तीत्यर्थः-जो आठ कर्मों का अन्त अर्थात् विनाश करते है, ३ अन्तत' कहलाते हैं। अन्तकृत होकर सिद्ध होते है, निष्ठित होते हैं व अपने स्वरूप से निष्पन्न होते हैं, ऐसा अर्थ जानना चाहिए । 'जानते हैं अर्थात् विकालगोचर अनन्त अर्थ और व्यञ्जन पर्यायात्मक अशेष वस्तु तत्त्व को जानते व समझते हैं।
पवला ६१, ९-९, २१६-४९०।। संसारस्पान्तः कृतो यत्रतेऽन्तकृतः ( केबलिनः )- जिन्होंने संसार का अन्त कर दिया है, उन्हें केवली कहते हैं।
. धवला ११, १, २२१०२१ नमि मसङ्ग, सोमिल रामपुत्र-सुदर्शन-यमलोकवलीककिष्किविलपालम्बाष्टपुत्रा इति एते दश बर्द्धमानतीर्थकरती""दारुणानुपसर्गाग्निजित्य कुरस्नकर्मक्षयादन्तकृतो-बर्द्धमान तीथंकर के तीर्थ में नमि, मतंग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, यमलोक, वलीक, किष्किविल पालम्ब, अष्टपुत्र ये दश दारुण उपसगों को जीतकर सम्पूर्ण कमों के क्षय से अन्तकृत् केवली हुए।
धवला १११, १, २०१०३२ उपयुक्त पश अन्तकृत केवलियों का जीवन आठवें अङ्ग अन्तकृत् दशांग में वर्णित किया जाता है।
पञ्च नमस्कार मन्त्र के माहाल्य को प्रकट करने के लिए महामुनि सुदर्शन का परित्र कथा अन्धों में प्रायः वर्णन किया गया है। इस मन्त्र का प्रभाव अचिन्त्य और अवभृप्त है । इसकी साधना द्वारा सभी प्रकार की हद्धि-सिरियां प्राप्त की जा सकती है। यह मन आत्मिक शक्ति का विकास करता है। इस