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________________ प्रथमोऽधिकारः अनन्तर मार्ग को पारकर चार गोपुरों से संयुक्त, मंगल निधानों से युक्त स्फटिक निर्मित उन्नत भवनों के बीच सोलह ऊँची दीवालों से शोभित, बारह प्रकोष्ठों वाले सभा स्थान की, इस प्रकार श्री महावीर प्रभु के समवशरण को महाप्रीति से तीन प्रदक्षिणा देकर श्रेणिक सन्तुष्ट हुआ ।। १०४-१०५.१०६ ।। वहाँ तीन मेखलाओं वाले पीठ पर मेरु के शिखर के समान थे, स्वर्ण और रत्नों से निर्मित अनुत्तर सिंहासन पर चार अंगुल छोड़कर स्थित वीर जिनेश्वर को निधान (धर्म के) के समान देखकर राजा परम सन्तुष्ट हुआ ।। १०७-१०८ ॥ वे देवाधिदेव (महावीर) चौंसठ महादिव्य चामरों को लिए हुए देवों से युक्त थे । वे ऐसे लग रहे थे मानों विशुद्ध झरने से युक्त सुमेरु पर्वत हों ।। १०९ ॥ वे समस्त शोक को नष्ट करने वाले थे, महान् अशोक वृक्ष का आश्रय लिए हए वे ऐसे लग रहे थे मानों सारमेघ से युक्त स्वर्णमयी आभा वाले पर्वत हो ।। ११० ।। दिशाओं का समूह नाना सुगन्धित पुष्पों के समूह से सुगन्धीकृत था 1 इन्द्रादिक के द्वारा अपने हाथ से छोड़ी हुई पुष्पवृष्टि से वे सुशोभित धे ।। १११ ॥ करोड़ों सूर्य से स्पर्धा करने वाले शरीर के भामण्डल से युक्त थे। उस भामण्डल में भव्य जीव अपने सात जन्मों को देख लेते हैं ॥ ११२ ।। वहाँ करोड़ों दुन्दुभियों का घोष हो रहा था। उन्होंने मोहरूपी शत्रु पर विजय प्राप्त की थी। ऐसे जिनप्रभु को अत्यधिक रूप से देखा ।। ११३ ॥ अथवा मोतियों की माला से युक्त सुन्दर छत्रत्रय से वे ऐसे लग रहे थे मानों तीन होकर सेवा के लिए आए हुए चन्द्रमा से युक्त हों ॥ ११४ ॥ मुर, असुर और मनुष्यादि के चित्त में सन्तोष उत्पन्न करने वाली संसार के लिए हितकारी दिव्यध्वनि तत्व का द्योतन कर रही थी ॥११५॥ वे अनन्त ज्ञान, दर्शन, वीर्य और सुख से युक्त थे, गुणों को खान थे, इन्द्र, नागेन्द्र, चन्द्र, सूर्य तथा राजाओं आदि से अचित थे ।। ११६ ।। इत्यदि केवलज्ञान से उत्पन्न विभूतियों से सुशोभित जिनेन्द्रदेव को देखकर मगधराज श्रेणिक आनन्द से युक्त हुए ।। ११७ ।।
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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