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________________ प्रथमोऽधिकारः मिथ्यात्व रूपी अन्धकार के लिए सूर्य, भव्य कमलों के समूह को सुख प्रदान करने वाले स्वामी समन्तभद्र नाम के मेरे भावी तीर्थकर जयशील हों || २३ ॥ विप्रवंश के अग्रणी, सूरि, पवित्र पात्रकेशरी, जो कि जिनेन्द्र भगवान् के चरणकमलो के सेवन के एकमात्र भ्रमर हैं, व जपशील हो ॥ २४ ॥ सूर्य के उदय होने पर जिस प्रकार उल्लू भाग जाते हैं, उसी प्रकार जिसकी वाणी-रूपी किरणों से बौद्धादि भाग गए, वह अकलज कवि कल्याण के लिए हों ।। २५ ।। श्री जिनेन्द्र भगवान् के मन रूपी समुद्र की वृद्धि के लिए जो एक मात्र उत्तम चन्द्रमा हैं, उन संसार के द्वारा बन्दना करने योग्य मुनि नायक जिनसेन की स्तुति करता हैं ॥ २६ ॥ रत्नत्रय से जिनकी पवित्र आत्मा है, जो सम्यक् चारित्र का आश्रय लेते हैं तथा मूल संघ के अग्रणी हैं, वे महान् रत्नकीति गुरु नित्य मेरी रक्षा करें ॥ २७ ॥ ___ जो कविता करने में समर्थ है, कुवादी रूपी मतबाले हाथियों को निर्मद करने में सिंह के समान हैं, ऐसे गुणभद्र गुरु जयशील हों ।। २८ ।। जो भव्य कमलों के लिए सूर्य के समान है, ऐसे गुणों की खान जगपूज्य भट्टारक प्रभाचन्द्र मेरे द्वारा नित्य पन्दित किए जाते हैं ।। २९ ।। ___ जीवाजीवादि तत्त्वों का उद्योत करने के लिए जी सूर्य के समान हैं, ऐसे दयानिधि सुरिश्रेष्ठ देवेन्द्रनीति की मैं वन्दना करता हूँ ॥ ३० ॥ ___ जो विशेष रूप से मेरे गुरु थे, दीक्षा रूपी लक्ष्मी की कृपा जिन्होंने मेरे ऊपर की थी, उन गुरु देवेन्द्र की में सुसेवक विद्यानन्दी भक्तिपूर्वक वन्दना करता हूँ ।। ३१ ।। श्री जिनेन्द्रोक्त सद्धर्म रूपी कमलों की खान के लिए जो सूर्य के समान हैं, ऐसे सम्यग्दृष्टि शिरोमणि आशाधर सूरि जयशील हों ।। ३२ ।। इस प्रकार मंगल के लिए सुख प्रदान करने वाली आप्त वाणी की भले प्रकार स्तुति कर सज्जनों के सच्चरित्र को कहता हूँ ।। ३३ ।। ___तुच्छ मेधा वाली होने पर भी संक्षेप से सुदर्शन महामुनि के चरित की रचना कर मैं पवित्र हुआ हूँ; क्योंकि अमृत का स्पर्श भी सुख के लिए होता है ।। ३४ ।। . इस प्रकार मन में मान करके भक्तिपूर्वक, सुख को लाने वाले उस चरित्र को मैं कहता हूँ, जो कि भव्य जीवों को भोग और मुक्ति दिलाने वाला है ॥ ३५ ॥
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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