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________________ एकादशोऽधिकारः २०५९. मात्र स्वीकार कर वहाँ परम आदर से सुख देने वाली दीक्षा ग्रहण कर, मनोरमा सती ने पवित्र आर्यिका होकर जिनोक्त शुभ सुतप किया, जो कि संसार के चित्त को प्रसन्न करने वाला और दुःख का भंजन करने वाला है ।। ८६-९० । सच है, परमार्थ रूप से कुल स्त्रियों का यह नित्य न्याय है कि अपने स्वामी के द्वारा धारण किए हुए शुभ उदय वाले मार्ग को धारण करती हैं ॥ ९१ ॥ पण्डिता धाय और उस देवदत्ताने पवित्र स्त्री (आर्थिका मनोरमा) उसे प्रणाम कर निजात्म की निन्दा कर, गुणों के आश्रित अपने व्रतों को शीघ्र स्वीकार कर लिया। ओह ! सज्जनों के प्रसङ्ग से पृथ्वी तल पर क्या नहीं होता है ।। ९२-९३ ॥ इस प्रकार भव्यजनों को पार करने वाली परम आनन्द को देने वालो सुदर्शन जिनेन्द्र की केवलज्ञानरूपी सम्पत्ति, जो कि समस्त देवेन्द्र, नागेन्द्र और विद्यावर आदि से समचित है, वह शुभोदया हमारे कर्मों की शान्ति के लिए हो ।। ९४-९५ ॥ r इस प्रकार विस्तीर्ण विभूति केवलज्ञानमूर्ति, समस्त सुखों के विधाता, प्राणियों के शान्तिकर्ता गुणों के समुद्र, अनन्तवीर्य रूप एक मुद्रा वाले, तीनों भुवनों के लोगों द्वारा पूज्य भव्य बन्धु श्रीजिन जयशील हों ।। ९६ ।। इस प्रकार पचनस्कार माहात्म्य प्रदर्शक मुमुक्षु श्रो विद्यानन्दविरचित श्री सुदर्शन केवलज्ञानोत्पत्ति व्यावर्णन नामक र अधिकार समाप्त हुआ ।
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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