________________
- २८ -
की प्राप्ति ( ५८-६० ) । इन्द्रासन को कम्पायमान होना । देवों का आगमन, गन्धकुटी निर्माण, स्तुति तथा धर्मोपदेश की प्रार्थना (६१-७६ ) । केवली द्वारा मुनि व श्रावक, आचार्य का तथा तत्त्वों, द्रव्यों व पदार्थ का उपदेश (७७-८३) व्यन्तरी का कोप शमन और सम्यक्त्व ग्रहण ( ८४-८५ ) । सेठ सुकान्त व मनोरमा का आगमन व मनोरमा का आर्थिका व्रत धारण । पंडिता की आत्मनिन्दा व व्रतग्रहण | केवलज्ञान की महिमा (८६-९६) ।
अधिकार १२ - मन मुनि की
पाप्ति
सुदर्शन केवली का मोक्ष बिहार व धर्मोपदेश व आयु के अन्त में छत्र चमरादि विभूति का त्याग कर मौन ध्यान अयोगकेवली गुणस्थान की प्राप्ति । अधाति कर्मों का क्रमशः श्रय तथा सिद्ध बुद्ध व निराबाध होकर शरीर का त्याग मोक्ष गमन (१-१७) । मिद्धों के गुण तथा पंचनमस्कार मंत्र का माहात्म्य (१८३७) । सुदर्शन चरित्र को पढ़ने-पढ़ाने तथा लिखने एवं सुनने वालों को सुखएवं मोक्ष की प्राप्ति (३८-३९) ।
के
वंश प्रभा
गौतम स्वामी से यह चरित्र सुनकर राजा श्रोणिक व अन्य नगरवासियों का राजगृह लौटना (४०-४१) । मंत्रारपुरी के जैन मंदिर में इस सुदर्शन चरित्र के रचे जाने की सूचना (४२) । सुदर्शन चरित्र तथा पंचपरमेष्ठी की महिमा (४३`४६ ) । मूलसंघ भारतीय गच्छ वलात्कार गण के मुनि कुन्दकुन्द चन्द्र मुनि उनके पट्ट पर मुनि-पद्मनन्दि भट्टारक उनके पट्ट पर देवेन्द्र की ति मुनि उनके शिष्य विद्यानन्द द्वारा यह चरित्र रचे जाने की सूचना ( ४७-४९} । देवेन्द्र कीर्ति के पट्ट पर मल्लिभूषण गुरु तथा श्रुतसागर सूरि सिह्नन्दि गुरु का स्मरण और उसमें मंगल प्रार्थना ( ५० ) | गुरु के उपदेश से नेमिदत्तव्रती द्वाराइस चरित्र की भावना की सूचना एवं ग्रन्थ समाप्ति (५१) ।