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________________ settsfuकार: १३७ वह भिल्लपति व्याघ्र भी मरकर कर्म के वश में किया गया गोकुल में 'कुत्ता होकर कदाचित् वह कृतज्ञ, ग्वाले को स्त्री के साथ कौशाम्बी आकर जिनालय देखकर, उसका आश्रय लेकर किंचित् शुभ कर्म से युक्त हुआ ।। ५८-५९ ।। उसने मरकर चम्पा में मनुष्य जन्म पाया । सिंहप्रिय नाम वाले किसी शिकारी की सिहिनी नामक स्त्री का पुत्र होकर वहाँ मरकर पुनः वह, चम्पा में सुभग नामक ग्वाला हुआ। वह तुम्हारे पिता सेठ के घर में ग्वाला हुआ। वह प्रौढ़ बालक वृषभदास की गायों का पालक हुआ ।। ६०-६२ ।। गायों के भली-भाँति पालन में वह उत्तम राजा के समान जनप्रिय हुआ ? वह कवि के काव्य के समान सबको मनोहर छन्द का ज्ञाता हुआ ।। ६३ ।। , वन में क्रीड़ा करता हुआ वह हरि के समान लगता था अथवा वृक्षों पर भ्रमण करते हुए वह कपि जैसा लगता था । अथवा वह पुष्पों का आस्वादन करने वाला भ्रमर था, वह सुस्वर ( अच्छे सुर वाला ) अथवा सुरोत्तमथा ॥ ६४ ॥ उसका मन नित्य निःशङ्क रहता था अथवा अपने आचरण में वह सत् दृष्टि वाला था । कार्यों में वह अप्रमादी रहता था और बालक होने पर भी योद्धा था ॥ ६५ ॥ एक बार पड़ती हुई शीत के समूह से आक्रान्त, संसार के लोगों को कम्पित करने वाले सुदुःसह माघ मास में वह सुभग भी, सन्ध्या के समय सेठ की गायों के समूह को लाकर रम्य बन में आए हुए चारण मुनीन्द्र को देखकर, जो संसार समुद्र के लिए नौका स्वरूप थे, भव्य जनों के सुख के कारण थे, एकत्व भावना से युक्त थे, बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित थे ।। ६६-६८ । रत्नत्रय से युक्त थे, चार ज्ञान से समन्वित थे, पाँच प्रकार के आचारविचार को जानने वाले थे, मोक्ष साधक थे ॥ ६९ ॥ पंच परमेष्ठी के प्रति निरन्तर भक्ति के समूह से युक्त थे। छः आवश्यक रूपी सत्कर्म का पालन करने में तत्पर थे ॥ ७० ॥ छः काय के जीवों के प्रति दया रूपी लता को सिंचन करने के लिए जो बड़े मेघ थे, छः प्रकार की लेश्याओं के विषय में भली भांति विचारज्ञ एवं सप्त तत्त्व के प्रकाशक थे || ७१ ॥
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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