________________
सप्तमोऽधिकारः दुःसह उस बात को सुनकर राजा कोपपूर्वक विचार करने लगे। आश्चर्य है, दुष्ट रात्रि में कैसे इस घर में आ गया ।। ८८ ॥
'पाखण्डो सेठ परस्त्री लम्पट और दूसरे को ठगने वाला है', मूढ़ मन वाला वह इत्यादि क्रोध रूपी अग्नि से रान्तप्त हुआ ।। ८२ ।।
विचाक मनी पीनी पाप-बेष्टाओं को जाने बिना वह पापी उनसे बोला-शीन ही मार डालो, मार डालो ।। ९०॥ __ यहाँ पर सामान्य चोर मारने योग्य है । दुष्ट मन वाले मेरे द्वारा क्या राजद्रोही, मेरी प्राणप्रिया में रत मारने योग्य नहीं है ।। ९१ ।।
उसे सुनकर कष्टकर वे कठोर स्वर वाले पापी किङ्कर शीघ्र ही वहाँ आकर और सिर पकड़कर, राजा के घर से निकालकर, श्मसान की ओर भागे। अविज्ञातस्वभाव बाले दुर्जन क्या नहीं करते हैं ? ९२-९३ ।। __ सौ कष्ट बाले समय में भी वह धीर सुदर्शन अपने चित्त में विचार करने लगा । यह मेरे कर्म का खेल है ।। ९४ ।।
मेरा बेचारे पराधीन किट्टर क्या करते हैं ? यहाँ पर सुख को लाने वाले सुनिर्मूल्य शील रूपी रत्न विद्यमान है ।। ९५ ।।
निश्चित रूप से निस्सार इस शरीर से क्या ? महन्त भगवान् का संसार का हितकारी जगत्पूज्य धर्म यहाँ जयगील हो ।। ९६ ।। ___इस प्रकार बुद्धिमान मेह के समान सुनिश्चल सुदर्शन श्मसान में लिए जाने पर भी अपने मन में ध्यान रूपी घर में सुखपूर्वक ठहरे ॥ ९७ ।।।
ओह पृथ्वी तल पर हिमालय को जीतने वाली सज्जनों की मनोवृत्ति का वर्णन कौन कर सकता है ? प्राणत्याग रूपी विघ्न के आ पड़ने पर भी जो निश्चल रहती है ।। ९८ ।।
तब नगर में घोर हाहाकार हुआ । कुछ लोग कहने लगे कि श्रीमान् सेठ सुदर्शन धर्मात्मा है ॥ २९ ।।
गृहस्थ के आचार को जानने वाला वह क्या कुकर्म को करेगा ? क्या आकाश में चमकता हा सूर्य अन्धकार कर सकता है ? १०० ||
श्रीमज्जिनेन्द्र द्वारा कहे हुए उत्तम शीलरूपी अमृत के समुद्र यह प्राण त्याग करने पर भी सर्वथा सदाचार का त्याग नहीं करते हैं ॥१०१। ___ अन्य नगरवासी लोग बोले कि अहो किमी पापी ने किसी कारण क्या किया होगा ? १०२ ।।