SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमोऽधिकारः वह श्री जिनेन्द्र के द्वारा कहे गए महान् सप्त तत्वों के चिन्तन करने में तत्पर था। मैं शुद्ध नय से अत्यन्त सिद्ध, बुद्ध, मल रहित, समस्त द्वन्द्वों से रहित तथा समस्त कलेशी स रहित हूँ। देहमात्र दिखाई पड़ने पर भी विशुद्ध चिन्मय हूँ ॥ ३०-३१ ।। संसार में कर्मों को छोड़कर मेरा कोई शत्रु नहीं है । पवित्र जिनकथित धर्म तीनों लोकों में उत्तम है ।। ३२ ॥ नित्य देवेन्द्रादि के द्वारा प्रजित दशलाक्षगिक धर्म मित्र है, जिससे भव्य लोग अत्यधिक शाश्वत स्थान का सेवन करते हैं ।। ३३ ।। शरीर दुश्चरित्र करने वाला, बीभत्स गन्ध वाला और निर्दय है। दुःख देने वाला यह पोषित किए जाने पर भी आधे क्षण में नष्ट हो जाता है।। ३४ ॥ हडी, मांस, चर्बी, चमड़ा, मल और मूत्र से भरे हुए चाण्डाल के घर के समान ज्ञानियों को इसका सदा त्याग कर देना चाहिए ॥ ३५ ॥ __उस देह में उत्तम नीर क्षीर की भौति मिल गया हूँ। मैं शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा सिद्ध स्वभाव और उत्तम अष्ट गुणों से युक्त हूँ ॥ ३६ ।। इत्यादिक वह बुद्धिमान् बणिक श्रेष्ठ चित्त में वैराग्य का चिन्तन कर रहा था। तभी वहाँ आई हुई दुर्बुद्धिनी पापी पण्डिता ने उसे देखकर कहा । हे वणिक् श्रेष्ठ भूतल पर तुम धन्य हो, तुम सुपुण्य हो । जो कि यहाँ राजा की श्रेष्ठ पत्नी रूप सौभाग्यशालिनी अभयमती तुम पर आसक्त है ।। ३७-३९॥ संसार के चित्त का विदारण करने वाली वह कामदेव के हाथ को भाला है । अतः तुम शीन आकर उसकी आशा सफल करो ।। ४० ।। ध्यान, मौनादिक श्रम से स्वर्ग में जो सुख भोगा आता है, उस सुख को हे भद्र, उसके साथ तुम यहाँ भोगो ।। ४१ ॥ __ सैकड़ों कष्टों को देने वाले इन कष्टकर तपों मे क्या करना ? यह सब जो तुमने आरम्भ किया है, इसका परित्याग कर बेगपूर्वक आओ ।। ४२ ।। ___ इत्यादिक उसके आलापों से तब वह पवित्रात्मा सेठ ध्यान से चलायमान नहीं हुआ। क्या हिमालय वायु से चलाया जा सकता है ? नहीं ।। ४३ ।।
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy