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________________ पञ्चमोऽधिकारः उसने जिनेन्द्र भवनों का उद्धार कराया और संमार के प्राणियों को तुप्त करने वाली मेघमाला के समान पापनाशक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई ।। ९७ ॥ राज्य कार्यों के मध्य में धीर दुद्धि वाला बन जिन कपित करता हुआ तीनों सन्ध्याओं में जिनराज की बन्दना और भक्ति में तत्पर रहता था ॥ ९८ ॥ सज्जनों को आनन्द देने वाला वह पवित्रारमा नित्य जिनेन्द्र भगवान् की वाणी सुनता था व सद्गुरुओं की सेवा करता था 11 ९९ ॥ भुवनों में उत्तम उसको धर्म प्रवृत्ति का क्या वर्णन क्या किया जाय? जिसे देखकर दूसरे बहुत से लोग धार्मिक हो गए ।। १०० ।। इस प्रकार सार रूप जिनेन्द्र भगवान् के धर्म का रसिक सुदर्शन सद्दानमानादि से नित्य सुन्दर परोपकार में तत्पर रहकर राजादि से सम्मान प्राप्त कर, नाना प्रकार के रल और सुवर्ण की वस्तुओं के समूह से, लक्ष्मी और सज्जनों से मण्डित होकर सार रूप गुणों की निषिस्वरूप सुखपूर्वक घर में रहा ।। १०१ ।। इस प्रकार सुदर्शनचरित में पञ्चनमस्कार माहात्म्य प्रदर्शक मुमुक्षु श्री विद्यानन्दि विरचित सुदर्शनष्ठिावप्राप्तिव्यावर्णम नामक पधम अधिकार समाप्त हुआ।
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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