________________
दुष्कृत में हो आरसी, प्राणघान में पंग । परनिंदा में बांधा हो, तज परम्रो को मग ।। हिन्दी अनुवाद सहित -
RRAH ८९ ___ स्वयं महाराज श्रीपाल मयणासुन्दरी और अन्य अपने परिचित जनों से विदा ग्रहण कर केवल ढाल तलवार ले वे उज्जैन से चल दिये । न तो उन्होंने किसी से वाहन आदि का प्रबंध करन के लिये कहा और न किसी से कुछ सहायता की याचना । वे तो अपन चन्द्र स्वर के बल पर ही निर्भर थे । अपना भविष्य चमकाने की एक सिद्ध कला है स्वरविज्ञान । देश पुर नगरना नव नवां, जोतो कोतुक रंग रे । एकला सिंह परे म्हालतो, चड्यो एक गिरि शृंग रे ||५|॥ वालम. सरस शीतल वन-गहन मां, जिहां चंपक तरु लाह रे ।
जाप जपतो नर पेखियो, करी उरध बांह रे ॥६॥ वालमा जाप पूगे करी पुरुष ते, ओल्यो करिस प्रणाम रे। सु-पुरुष तू भले आवियो, सयु माहरूं काम रे ॥७॥ वालम० __ कुंवर कहे मुज सरीखो, कहो जे तुम्ह काज रे ।
घणे आगे उपकार ने, दीधां देह धन राज रे ॥८॥ वालम० ते कहे गुरु कृपा करी घणी, विद्या एक मुज दीघ रे । घणो उद्यम कार्यो साधवा, पणं कारज न सिद्ध रे ॥९॥ वालम
___ बार
स्वामी
निधि | समय। कृष्ण पक्ष । शुक्ल
प्रातः सूर्य स्वर | चन्द्र स्वर | शुभ
म. श. र.
सूर्य स्वा
प्रातः | चन्द्र स्वर सूर्य म्बर | शुभ | बु गु शु सा चन्द्र स्वर ७-८-९ प्रानः । सूर्य स्वर | चन्द्र स्वर | शुभ
राशि का स्वामी १०-१५-१२ | प्रातः । चन्द्र स्त्रर | सूर्य स्थर | शुभ
मे. म
कर्क तु. सूर्य स्वर १३.१४-१५ । प्रात: सूर्य स्वर | चन्द्र स्वर | शुभ
चन्द्र स्वा अमावस्या प्रातः सूर्य स्वर | चन्द्र स्वर | शुभ | कन्या । सुषुम्णा म्बा
नि.