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धन है पर देने नहीं, बोले न मधुर वचन । दान मान युत धन दिये, त्रिश्ले हैं वे जन ॥ ॐ श्रीपाल राम ८८%96
आप उन नई स्त्रियों की चकाचौंध रसीली बातों मुझे भूल न जाना ।
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मैं आपकी शुभ मंगल कामना के लिये आज से प्रतिदिन एकासणा व्रत करूँगी । अंजन मंजन, स्नान, संचित पदार्थ, बहुमूल्य वस्त्र आभूषण आदि शृंगार का परित्याग कर भूमिशयन विरह की वेदना के समय मंगलमय श्री सिद्धचक का ध्यान कर आपके शुभागमन की प्रतीक्षा करूंगी। वह दिन वह घड़ी धन्य होगी कि जिस दिन पुनः आपके पवित्र चरणों के इस दासी को दर्शन होंगे । कृपया आप शीघ्र ही वापस लौट कर इस दासी की सुध लें ।
सज्जन बोलावी इणी परे, लेई ढाल कृपाण रे !
चन्द्र नाड़ी स्वर पेस्ता, कुंबरे कीध प्रयाण रे, वा० ॥ ४ ॥ स्वर विज्ञान
आज स्वरविज्ञान का अध्ययन लुप्त सा हो रहा है। यह वह प्रसिद्ध चमत्कारिक विद्या है जिसे जान कर मानव स्वस्थ दीर्घायु बन जीवन को सफल बना सकता है। ध्यान की विधि से मन को केन्द्रित कर अनेक भावों के कर्मों को क्षय कर सहज ही परमपद को प्राप्त कर लेता । है
स्वर विज्ञान का एक संक्षिप्त परिचय :--
नाड़ी के नाम और स्थान:- (१) इडा, दाहिनी नाक, सूर्य स्वर (२) पिंगला- बांई नाक चन्द्रस्वर । (३) सुषुम्णा - नासिका का मध्य भाग अर्थात् दोनों नासिका से एक साथ हवा निकलता । (४) हस्ति जिह्वा दाहिना नेत्र । (५) गान्धारो - बांया नेत्र । (६) पूषा-दाहिनो कान (७) यशस्विनी बांया कान | (८) अलबुषा मुख ( ९ ) कुहू - मुत्रस्थान । (१०) शंखिनी-गुदा, ये नाड़ी के दस स्थान है । इन में इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा ये तीन नाड़ियाँ और पृथ्वी, जल, अग्नि वायु और आकाश ये पंच तत्व प्रमुख है ।
1 दिशा में। बलबान
तत्य अकार
पश्चिम पृथ्वी
पूर्व
दक्षिण अग्नि
उत्तर
त्याज्य
अल
०
वायु
आकाश निराकार
स्वाद बीज अंगुल
मधुर
सफेद
तुम
लाल चरका
रंग
पीला
हरा
काला
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बेमालूम
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खट्टा य
१२
१६
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८
नाक अस्पष्ट
कार्य
स्थिर
चर
क्रूर
उच्चाटन
धर्मध्यान
स्थान
नासिक
का मध्य
नाक का नीचे
का मध्य
उपर का
भाग
ऋर सुबह
चंद्र बुध
सोम
स्वामी!
चंद्र
सूर्य म
शुक
देड़ा सूर्य गुरु
दोनों वर
शून्य गति सूर्य