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विस्तृत शारूद थे, प्रभु इसोयची पुत्र । मुनिवर को लख भाव से, हुए केवली सूत्र ।। हिन्दी अनुवाद सहित -R RRRRRRRR२ ८७
मन पाखे मयणा कहे, पियु तुम वचन प्रमाण !
छे पंजर सूनु पड्यु, तुम साथे मुज प्राण ॥४॥ प्राणनाथ ! आपका मेरा अभिन्न हृदय, अमेह व्यवहार है। आपके देह की परछांही के समान ही मैं भी सदा आपके साथ हूँ | मुझे न भूलना। विरह एक ठण्डी आग है । नारीहृदय को आग उतना संतप्त नहीं करती है, जितना पतिवियोग ।
महाराज श्रीपाल ने मुस्करा कर कहा-प्रिये ! देशाटन में निश्चितता आवश्यक है। अतः तुम परम पूज्य माताजी की सेवा में रहो । इतनी अधीर न होओ, चिन्ता न करो। मैं अपनी मनोकामनाएं सफल कर शीघ्र ही वापस लौट आऊँगा ।।
प्राणनाथ ! दासी आपकी आज्ञा का अतिक्रम कैसे कर सकती है। किन्तु मेरा हृदय, और सद्भावनाएं तो सदा आपके साथ हैं, केवल नाम मात्र की यह जड़ देह यहां समझियेगा।
चन्द्र बिना चातक दुःखी, स्वाति जल विन सीप। पतिव्रता पति बिन दुःखी, ज्योति बिना जस दीप ॥
ढाल-दूसरी
( राग मल्हार, तर्ज कौश्या उभी आंगणे ) वालम वहेला रे आवजो, करजो माहरी सार रे । रखे रे विसारी मूकता, लही नव नवी नार रे, वालम० ॥१॥
आज थी करीश एकासगुं, को सचित्त परिहार रे ।
केवल भूमि संथारशुं, तज्यां स्नान शणगार रे, वालम ||२|| ... ते दिन वली कदी आवशे, जिहां देखीश पियु पाय रे । ...! विरहनी वेदना वारशु, सिद्धचक्र सु पसाय रे, वालम० ॥३॥
मयणासुन्दरी प्राणनाथ ! आप के रूप-सौन्दर्य, साहस, बल, पुरुषार्थ, धैर्य, सद्गुण आदि प्रबल पुण्योदय से आकर्षित हो अनेक राजा-महाराजा अपनी कन्याएं आपको प्रदान करेंगे