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________________ मेडक पावन भाव से, प्रभु चंदन को जाय । काल ग्रास पथ में बना. देव रूप हुई काय। ८६ % 2-2- 2 8 -% श्रीपाल राम कमलप्रभा ने अपने लाल के भाल पर कुंकुम अक्षत का तिलक कर आशीवाद दिया। यश बढ़े, दौलत बढ़े, मन में सदा संतोष हो । धर्म सत् उपकार का, जीवन अलौकिक कोष हो । ताप सब जाते रहें, दुश्मन सदा न्यारे रहें । पाप कर्म जो कुछ रहे हों, लेश वे सारे बहें । ज्ञान हो सम्मान हो, नित नवपद का ध्यान हो । हाथ डालोगे वहीं विजय श्री का वरदान हो । कमलप्रभा- वत्स श्रीपाल : तुम्हारी विदेशयात्रा सफल हो, श्रीसिद्धचक्र यंत्र के अधिष्ठायक देव-देवियाँ सदा तुम्हारा साथ दे । परदेश का काम है, रात्रि के समय अधिक निद्रा न लेना । देखो ! परदेश में सफलता प्राप्त कर शीघ्र ही वापस लौट आना | ___ महाराज श्रीपाल मां की सीख शिरोधार्य कर, विजय मुहूर्त में जैसे ही आगे बढ़ घोडा हिह हिनाया, छींक का शब्द सुनाई दिया। पक्षियों की अस्पष्ट बोली जयविजय की मूचक थी। श्रीमान् विनय विजयजी महाराज कहते हैं कि भावी भाव अवश्य बन कर रहता है। मां और बेटे का वियोग होते क्या देर लगी? श्रीपाल रास के दूसरे खण्ड की यह पहली ढाल सम्पूर्ण हुई । दोहा हवे मयणा इम विनवे, तुम से अविहड़ नेह । अलगी क्षण एक नवि रहूँ जिहाँ छाया तिहाँ देह ।।१।। अग्नि सहेतां सोहिला, विरह दोहिलो होय । कंत विछो ही कामिनी, जलण जलंती जोय ॥२॥ कहे कुंवर सुन्दरी सुणो, तूं सासु पय सेव । काज करी उतावलो, हूं आq छ हेव ॥३॥ कई लोग शुभ काममें अथवा प्रयाण में छींक होते हो घबरा जाते हैं, मन में शंका करने लगते हैं। किन्तु छत झरीखे आदि के उपर से होने वाली छींक सदा सिद्धिदायक शुभ की सूचक है 1 डांबी छौंक, जिमणी खांसी भी शुभ मानी जाती है !
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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