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________________ चूने बिना ताम्बुल यथा. दर्शक घिन ज्यों रंगा दान शोल तप धर्म पै भाव विना है जग ।। हिन्दा अनुवाद सहित RRREKKeX-KKKR ८५ माय सुणी आवी कहे, हु आवीश तुज साथ रे । घड़ीय न धीरू एकलो, तुहिज एक मुज आथ रे ॥ ६॥ को. कुंवर कहे परदेश मां, पग बंधन न खटाय रे। तिणे कारण तुम इहां रहो, दो आशीष पसाय रे ॥७|| की. कमलप्रभा, श्रीपाल के परदेशगमन के समाचार सुन रो पड़ी। वह शीघ्र ही दौड़ कर अपने पुत्र के पास आ बोली : बेटा! क्या सचमुच तुम जाने की तैयारी कर रहे हो ? परदेश सिधाते समय तुम तुझे न भूलना, में भी तुम्हारे साथ चलूगी । महाराज श्रीपाल - पूज्य माताजी ! धृष्टता के लिये क्षमा करें। प्रवास एक ऐसी समस्या है कि उसमें पग बंधन उचित नहीं । अतः विवश हुँ। कृपया आप आनंद से यहीं पर विराजियेगा। बेटा ! मेरा जी नहीं चाहता है कि तुम एक धड़ी भी मेरी आँखों से दूर रहो । तू ही एक मेरे जीवन का सहारा आँखों का तारा है । माताजी ! यदि आपकी कृपा है तो मैं आपसे दूर नहीं। आप सदा मेरे मनमन्दिर में आसीन हैं। आप का आशीर्वाद चाहिए । जल में बसे कुमुदिनी, चंदा बसे आकास । जो जाके हृदये बसे, सो वाही के पास ॥ मांय कहे कुशला रहा, उत्तम काम करजो रे । भुज बले वैगे वश करी, दरिसण वहेलु देजो रे ॥८॥ की. संकट कष्ट आवी पड़े, करजो नवपद ध्यान रे । रयणी रेहजो जागतां, सर्व समय सावधान रे ॥९॥ की. अधिष्ठायक सिद्ध चकना, जेह कह्या छे ग्रंथ रे। ते सवि देवी देवता, यतन करो तुम पंथ रे ॥१०॥ की. एम शिखावण देइ घणी, माता तिलक वधावे रे । शब्द शकुन होय भला, विजय मुहूस्त पण आवे रे ॥११॥ की. रास च्यो श्रीपाल नो, तेह ने खण्डे रे। प्रथम ढाल विनये कही, धर्म उदय थिति मंडे रे ॥१२॥ की.
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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