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________________ क्रोध प्रीति नाशक कहा, दुर्गति वध क कोध । मित्र पक्ष को परिताप दे, दुख पहुंघाचे कोष ।। ९. S H AKRA श्रीपाल रास उत्तर साधक नर विना, मन रहे नहीं ठाम रे । तिणे तुम ए करूं विनती, अवधारि ये मम स्वाम रे ॥१०॥ वालम० महाराज श्रीपाल अनेक गांव, नगर, देहात, वन-उपवन में घूमते फिरते एक किर्मा ऊँचे पहाड़ पर जा पहुँचे । वहाँ देवदारु, चंदन सेमल, ढाक के वृक्ष, लताओं के झुरमुट. हिरण, खरगोश, बारहसिंगे, मयूर, सारस आदि पशुपक्षी ताल तलैया, निर्मल जल का दृश्य बड़ा सुन्दर था । उन्होंने चम्पे की ठण्डी छाया देख विश्राम किया । मन्द मन्द शीतल सुगन्धित पवन से उनकी सारी थकावट दूर हो गई। वे जलपान कर बैठे थे कि उन्हें सामने एक साधक तपस्वी दिखाई दिया । वह उर्वभूजा कर ध्यान कर रहा । महाराज श्रीपाल भी श्रीसिद्धचक्र के ध्यान में मस्त थे। साधक पलक खोलते ही अपने सामने एक हृष्ट-पुष्ट सुन्दर नवयुवक को देख चकित हो गया ! उसने आगे बढ़ कर महाराज श्रीपाल को अभिवादन कर कहा । महानुभाव ! आपने बड़ी कृपा की आज चिर प्रतीक्षा के बाद आप श्रीमान के दर्शन हुए। श्रीपाल—मेरे योग्य कोई सेवा ? वे मानव धन्य है, जो सदा सत्संग-परोपकार-परमार्थ में अपना समय और संपत्ति अर्पण करते हैं। साधक-महानुभाव ! हार्दिक धन्यवाद । मुझे आपका शान्त स्वभाव, निस्पृह सेवा, उदार भावना देख मुझे बहुत संतोष हुआ। एक बार मेरे गुरुदेव ने प्रसन्न हो मुझे एक विद्या प्रदान की थी। उसकी कठोर साधना में आज वर्षों बीत गये किन्तु शरद ऋतु के बादल के समान मेरा सारा श्रम विफल हुआ । वह विद्या अब तक सिद्ध न हुई । क्या आप इस साधना में कुछ सहयोग दे सकेगें ? बड़ी कृपा होगी । चंद्र स्वर के कार्य : कलशारोपण, खात मुहूर्त, मूर्ति-प्रतिष्ठा, भवन-निर्माण, नवीन घर में वास, दान देना. लग्न, तोरण मारना, देव-गुरु-दर्शन, औषधि लेना अथवा बनाना, परमार्थ- परोपकार, दीक्षा व्रतग्रहण, जलपान, किसी से मित्रता करना । व्यापारादि कार्य करना, पश्चिम तथा दक्षिण में गमन करना शुभ माना जाता है । जलपान-पेशाब करना। सूर्य स्वर में :-... ___ यंग, मंत्र, तंत्र युद्ध, विद्या अध्ययन, शार्थ, व्यायाम, नगर प्रवेश, किमो को कर्ज देना, श्यन. भोजन और पूर्व तथा उत्तर दिशा में गमन करना श्रेष्ठ माना जाता है। (१) प्रातःकाल और मध्याह्न में चन्द्र स्वर संध्या के समय सूर्य स्वर का चलना शुभ माना है। (२) किसी से लेन देत, वाद विवाद, या कोई सलाह-विचार करना हो तो अपना चन्द्र या सूर्य स्वर जो भी समय पर चलता हो उसके बांई तरफ सामने वाले व्यक्ति को बैठा कर बात करनेसे मनोकामनाएं सफल होती हैं। ऐसा स्वर शास्त्र का अभिप्राय है। आहार निहार (चौब) करना।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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