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________________ विश्वासघात करना नहीं, न करो अरि विश्वास । कृतघ्नता को त्याग दो, फरो न पर को आम्र ।) हिन्दी अनुवाद सहित RR R RA२ ९१ कंवर कहे साध विद्या सुखे, मन करी थिर थोभ रे । उत्तर साधक मुज थकां, करे कोण तुज क्षोभ रे ॥११॥ वालम० कुंवरना सहाय थी ततखिणे, विद्या थई तस सिद्ध रे । उत्तम पुरुष जे आदरे, तिहां होय नव निद्ध रे ॥१२॥ वालम० कुंवर ने तेणे विद्या धरे, दीधी औषधि दोय रे । एक जल तरणी अवर थो, लागे शस्त्र नहीं कोय रे ॥१३॥ वालम. महाराज श्रीपाल - भय एक विष है। यह मानव की सफलता में अनेक रोड़े अटकाता है। आज जीवन को सफल बनाने में लाखों स्त्री-पुरुष इसी लिये असफल हो रहे हैं कि उनके मस्तिष्क में भय का भूत सवार है । आप मानसिक चंचलता का परित्याग कर निर्भय हो फिर से अपनी साधना करियेगा । अवश्य सिद्धि-सफलता आपका स्वागत करेगी। मैं आपके साथ हूँ। नवयुवक की प्रेरणा ने साधक के रक्त में सनसनी पैदा कर दी, विद्युत् बल से उसका वर्षों का काम घण्टों में निपट गया। वह सफलता प्राप्त कर फूला न समाया । उसने प्रसन्न हो दो दिव्य औषधियाँ यथा नाम तथा गुण एक जल तरणि और दूसरी शस्त्र हरणि महाराज श्रीपाल के चरणों में भेट कर उनका आभार माना । सिद्धियाँ तो सदा पुण्यवान पुरुषों के चरणों में लौटा करती हैं। कुंवर विद्याधर दोय जणा, चाल्या पर्वत मांहि रे । धातुरवादी रस साधता, दीठा तरु छांही रे ॥१२॥ वालम० तेह विद्याधरने कहे, तुमें विधि कह्यो जेह रे । तिणे विधे खप अमे बहु को, न पामे सिद्धि एह रे ॥१५|| वालम कुंवर कहे मुज देखतां, वली एह करो विधि रे । कुंवरनी नजर महिमां थकी, थई तत्क्षण सिद्धि रे ॥१६॥ वालमा धातुरबादी कहे नीपर्नु, कनक तुम अनुभव रे। एहमांथी प्रभु लीजिये, तुमतणो जे मन भाव रे ॥१७॥ बालम.,
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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