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________________ मृगपति इयो मृग का प्रस्ने, नाविध यम को जान । जनक, जननी, सुन बन्धु भी, नहों महायक मान ।। ९६ - - - थोपाट रास कुंवर कहे मुज खप नहीं, कुण उचले भार रे । अल्प तिणे अंचल बांधियु. करी घणी मनुहार रे ।।१८।। वालमा ___ साधक और श्रीपाल कुंबर दोनों पर्वत की घाटियाँ पार कर आपस में बातचीत ___ करते हुए बहुत दूर निकल गए । 'आमें उन्हें एक सघन वटवृक्ष के नीचे दो कीमिया__ गर मिले जो कि अपगे कार्य में असफल हो बेचारे चुपचाप अपना सा मुंह लिये कंटे थे। साधक को देखते ही एक ने आँख बदल कर कहा–रे ढोंगी . तेरे चक्कर में फंस हम अपने समय और संपत्ति दोनों से हाथ धो बैठे। दुविधा में दोनों गये, "माया मिली न राम" श्रीपाल कुंवर ने मुस्करा कर कहा--अंतराय कर्म क्या नहीं करता। अपनी भूल दूसरों पर न महो । कहो क्या बात है ? तुम्हें स्वर्ण चाहिए ? लो श्री सिद्धचक्र का नाम, और फिर से कसे तुम्हारा काम । कीमियागर की क्या शक्ति थी जो कुंवर की रात को टाले ? उसने जैसे ही दुवारा भट्टी चढ़ाई, तो पो बारह पच्चीम बावन तोला पाच रत्ती कार्य सिद्ध होते देर न लगी। स्त्रणे का ढेर देख वह चकित हो गया। उसकी प्रसन्नता का पार नहीं । वह मान गया कि वास्तव में महापुरुषों की दृष्टि में अमृत बरसता है। उसने हाथ जोड़ कर कहा---प्रभो : अपनी इच्छानुसार स्वर्ण ग्रहण कर इस दास को अनुगृहीत करियेगा । दोनों मित्र कीमियागर की बात सुन बड़ी द्विधा में पड़ गए। उन्हें स्वर्ण की चाह नहीं थी. कौन बेकार भार उठाए : लाख मना करने पर भी उसने एक स्वर्ण का ढेला कुंवर के पल्ले बांध ही दिया । अनुक्रमे कंबर आवियो, भरू अच्च नगर मझार रे। हेम खरची सजाई करी. भला वस्त्र हथियार रे ॥१९॥ वालम. सोवन मढ़िये ते औषधि, अंधी दोय निज बांही रे। बहुविध कौतुक देख तो, फरे भरू अन्च माही रे ॥२०॥ बालम खंड बीजो एह रासनो, वीजा ए तस दाल रे । विनय कहे धर्म थी सुख हुए, जेम राय श्रीपाल रे ॥१२॥ वालमा श्रीपाल कुवर अपने मित्र-साधक और क्रीमियागरों से विदा ग्रहण कर आनंद से घूमते-फिरते भरूच आ पहुँचे । आज यहाँ आने का उनके जीवन में पहला अवसर था । नगर के सौध शिखरी जिन चैत्य, भव्य भवन, नागरिकोंकी सौजन्यसा, रहन-सहन वेषभूषा देख वे बहुत प्रसन्म हुए। आगे
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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