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आगी से जलना भला, भला, हल-इल पान | मर्प संग सोना भला, बुरा प्रमादो ध्यान ।। हिन्दी अनुवाद सहित *- *-* -
५ बढ़ कर एक सराफ के यहाँ स्वर्ण बेच उन्होंने बाजार से अनेक बहुमूल्य अस्त्र, सख, वस्त्रादि खरीदे । एक सुनार से स्वर्ण का आवरण ( ताबीज ) बना उसमें अपने प्रिय मित्र का उपहार दिव्य औषधि रख अपने भूज पर धारण की, अब वे आनन्द से भरूच में रहने लगे थे, प्रतिदिन सुबह-शाम बड़े ठाठ से घूमने जाते ।
श्रीपाल रास के लेखक श्रीमान् उपाध्याय विनय विजयजी कहने हैं, यह दूसरे खण्ड की दूसरी ढाल सम्पूर्ण हुई। जिस प्रकार श्री सिद्धचक्र की आराधना, धर्म ध्यान के प्रभाव से श्रीपाल कुंबर को सुख सौभाग्य प्राप्त हुआ उसी प्रकार श्रोतागण और पाठक भी भाग्यशाली बनें ।
दोहा कोमंबी नयी वसे, धवल सेठ धनवंत । लोक अनर्गल धन भणी, नाम कुबेर कहत ॥१॥
शकट ऊँट गाड़ाभरी, करियाणा बहु जोड़ी।
ते भरू अच्चे आवियो, लाभ लहे लख कोड़ी ॥२॥ वस्तु सकल वेची तिणे, अवर वस्तु बहु लींध ।
जल वट प्रवरण पूस्खा, सकल सजाई कीध ।।३।। व्यापारी धवल सेठ :__ भरूच नगर एक अच्छा व्यापारिक केन्द्र है। वहां दूर से अनेक सेठ साहूकार आ बसे थे। आसपास गांवों से कृषक लोग गेहूँ, जुवार, चने, उड़द, कपास आदि कच्चा माल लाते और बदल में सोना, चांदी, लोहा, वस्त्रादि गृहोपयोगी पक्का सामान ले जाते थे। दुकानदार सुबह से शाम तक क्रय-विक्रय करते करते वेचारे थक जाते फिर भी ग्राहक उनका पीछा नहीं छोड़ते थे ।
एक दिन अच्छा मोटा जाता एक सेट अपनी मूंछो पर हाथ फेरते हुए बड़े ठसक उसके साथ मंडी में आ निकला । उसे देखते ही मधु-मक्खियाँ की तरह चारों ओर से उस पर दलाल लोग टूट पड़े। परिचय से उन्हें ज्ञात हुआ कि आप कोसंबी निवासी धवल सेठ हैं। इनके साथ हजारों घोड़े, बैल, ऊँट गाडियाँ माल से लदी देख कोई इन्हें लक्ष्मीपुत्र कहता तो कोई कुवेर पति । सेठ ने अल्प समय में ही लाखों-करोड़ों का क्रय-विक्रय कर मनचाहा धनोपाजेन किया फिर भी उन्हें संतोष न हुआ ।