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___ मोक्ष सुस्वों का स्थान है नरक दुखों को खान ! अाहार व्रत , स्म । : : ८२ 18- *-MARRRRRRR श्रीपाल रास पुरुष, अपने मकानों की छत्तों और झरोखों पर चढ़ कर उनके दर्शन की प्रतीक्षा कर रहे थे। स्थान स्थान पर प्रतिष्ठित नागरिक लोग अक्षत, मोतियों के स्वस्तिक, फूलों की वृष्टि कर उनका स्वागत करते थे । श्री सिद्धचक्र की जय ! श्रीपाल नरेश की जय ! जय हो : जय हो !' बढ़े जाओ महरबान । जय निनाद से सारा आकाश गुंज उठा।
मुग्धा पूछे माय ने, मां ए कुण अभिराम | इन्द चन्द्र के चक्कवी, श्याम गम के काम ॥ ६ ॥
माय कहे म्होटे स्वरे, अवर म झंखे आल |
जाय जमाई गय नो, मंश कुंवर श्रीपाल ||७|| बचन सुणी श्रीपाल ने, चित्त मां लागी चोट । धिक ससग नामे करी, मुझ ओलखावे लोक ॥८॥
उत्तम आप गुणे सुण्या, मज्झिम बाप गुणेण ।
अधम सुण्या माउल गुणे, अधमाधम सुसरेण ॥९॥ एक नादान बालिका ने झरोखे में अपना हाथ लम्बा कर अंगुली के संकेत से कहा, मां! मां !! ये घोड़ा कुदाते कौन आ रहे है? राम है ? कृष्ण हैं ? इन्द्र है ? चक्रवर्ती है ? कामदेव है ? उत्तर कौन दे ! मां का जी तो सवारी की तड़क भड़क में चिपटा था । वह तो जनता के गहने-गांठे, भांति भांति के कपड़ों की चमक दमक, देखने में लगी थी।
लड़की ने झुंझला कर मां का ओढ़ना खींच लिया। बुढ़िया ने लाज ढकते हुए कहा, अरे, यह क्या करती है ? लड़की ने मुस्कराते हुए कहा, मां ! बता, ये कौन हैं ? बुढ़िया ने झिडक कर कहा - पगली, क्यों झूठ मूठ इन्हें राम, कृष्ण कह रही है ? ये न राम हैं, न कृष्ण । "ये हैं अपने सरकार प्रजापाल के बेटी-जमाई" ।
वृद्धा के कर्कश शब्द सुन छोटी सी बालिका चुप रह गई. वह आगे कुछ न पूछ सकी, कि ये कहाँ के हैं ? कब आए ? इत्यादि ।
बूढ़ी मां के चिड़चिड़े स्वभाव, कटु स्वर ने बच्ची के मन को ही नहीं किन्तु श्रीपालजी के हृदय को भी विदीर्ण कर दिया। उन्हें बड़ी ठेस पहुँची । सहसा उनकी मुखाकृति बदल गई, हर्ष के बदले उद्वेग आ खड़ा हुआ । वे अब आगे बढ़ न सके ।