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धन लोलुप को द्रव्य दे, कामार्थी को काम । स्वर्ग मोक्ष में हेतु है, धर्म तत्व को नाम ॥ हिंदी अनुवाद सहित 26 NR****
८१ सूरिचर राजेन्द्र को, चंदन सूरि यतीन्द्र । हिन्दी अनुवादक न्याय है, लेखक विनय कोन्द्र ।।
हे शारदे ! अब कर कृपा, मुनि न्याय के प्रयास पर । द्वितीय खण्ड अनुवाद लिखू, श्रीपाल के इस रास पर ॥ सफलता पाओगे निश्चित, सिद्ध भक्ति का प्रयास कर । यह पाठक पढ़ो तुम ध्यान से, लक्ष्मी मिले साहम कर ।। एक दिन रमवा निकल्यो, चहँटे कुंवर श्रीपाल | सबल सैन्य सु पस्वों , यौवन रूप रसाल ||३||
मुख सोहे पूरण शशि, अर्घ चन्द्र सम भाल ।
लोचने अमीय कचोलड़ा, अधर अरुण प्रवाल ॥४॥ दंतःजिस्या दाडिम कली, कंठ मनोहर कंबु । पुर कपाट परि हृदय तट, भुज भोगल जिम लंबु ॥५॥
केड़ लंक केहरी समो, सोवन बन्न शरीर ।
फूल खरे मुख बोलतां, ध्वनि जलधर गंभीर ॥६|| चोक चोक चहटे मल्या, रूपे माह्या लोक । महेल गोख मेड़ी चढ़े, नर नारी ना थोक ||७||
महाराज श्रीपाल की अर्गला सी लम्बी भुजाएं, विशाल वक्षस्थल (छाती) अष्टमी के चन्द्र सा चमकता ललाट, तेजस्वी मुस्कराता मुख, अमृत के कटोरे से नेत्र, अनार दाने सी दंत-पंक्ति, होठों की लाली, शंख सी लंबी गर्दन, सिंह सी मजबूत पतली कमर, कंचन सी काया युवावस्था की सूचक थी, उनकी मेध सी गंभीर मधुर सुकोमल वाणी
और रूप सौन्दर्य में बड़ा आकर्षण था। उज्जैन के नागरिकों को श्रीपाल महाराज के दर्शन कर उनसे वार्तालाप करने की बड़ी उत्कण्ठा रहती थी। ____एक दिन महाराज श्रीपाल हाथी, घोड़े, रथ, पायदल के साथ बड़ी सज-धज से घूमने निकले । जनता को ज्ञात होते ही चौराहों पर पैर धरने की जगह नहीं, अपार भीड़ । हजारों स्त्री