________________
यूप बने ओ और को, तम खाई तयार । निम्न वृक्ष पे आम्र फल, कैसे होय विचार ।। ८. HAMAK
श्रीपाल रारा मन क्या है ?
इसे न तो तुम्हारी तेज आँखें देख सकती हैं न हाथ ही उसे अपने आधीन रख मकते हैं। मन का न कोई रूप है, न रंग, न आकार | वह विचित्र है, सब देखता है, सब सुनता है। हम जिस शक्ति द्वारा सुख-दुःख का अनुभव करते हैं उसी अदृश्य शक्ति का नाम है मन ।
मनुष्य के लिये विजय प्राप्त करने के सबसे बड़े दो साधन हैं। पहली मन शक्ति और दूसरी तलवार । लेकिन मनशक्ति के सामने तलवार निर्बल सिद्ध हो चुकी है । महाराज श्रीपाल के जीवन में सफलता की जड़ है मन | वे मन की शक्ति के सम्राट थे। उन के मन में, रोम रोम में श्री सिद्धचक्र की भक्ति थी, वे आश्विन और चैत्र में केवल नौ दिन बीस बीस माला गिन कर ही चुप नहीं बैठते थे। वे महान घातक अन्तरंग शत्रु ईर्षा, क्रोध, घृणा, घमण्ड, संदेह और निराशा से मदा मावधान रहने थे। पाठक गण आगे पढ़ेंगे, श्रीपाल पर धवल सेठ ने जब जब भी आघात-प्रत्याघात किये हैं, तब तब वे मनशक्ति के बल से ही विजयी हुए हैं।
आज सौ में से निन्यानवे स्त्री-पुरुष ऐसे हैं जो श्री सिद्धचक्र आराधना म दूर हैं, इस के रहस्य से अनभिज्ञ हैं। कुछ स्त्री-पुरुष वर्ष में दो बार नवपद ओली करने अवश्य है, किन्तु वे केवल तप से शरीर सुका कर रह जाते हैं। वे अपने मन की दिव्य शक्ति के गुप्त रहस्य को नहीं जान पाते है। ओली करने के बाद उन के दैनिक जीवन में परिवर्तन पैदा नहीं होता है। मन पर संयम न रखने के कारण खतरनाक शत्रु ईर्षा, क्रोध, घृणा, घमण्ड, संदेह और निराशा से लुट जाते हैं ।
ईर्षा, क्रोध आदि घातक शत्रुओं से सदा सावधान रहो । श्री सिद्धचक्र की आराधना करो। विनय विजयजी कहते हैं कि मेरा निज का अनुभव है कि जीवन की सफलता का मूल मंत्र है सिद्धचक्र आराधना । मनुष्य भर पा कहीं आप श्री सिद्धचक्र की आराधना से वंचित न रह जाय ।
हे शारदे ! अब मैं श्रीपाल रास की उत्तर कथा लिखने का साहम करता हूँ तू मुझे विशुद्ध बुद्धि प्रदान कर । मैं तेरी शुभासीस से अवश्य सफलता प्राप्त करूँगा
मंगलाचरण (अनुवादकर्ता को आर से)
यह सिद्धचक्र चितामणि, सेवे सुर नर इन्द्र । वंदन से लक्ष्मी मिले, कीर्ति बड़े जिम चन्द्र ॥