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मर उठा सकता न कोई, विध्याचल के सामने । तुच्छ है बल वैसे ही सब आत्मबल के सामने। हिन्दी अनुवाद सहित RES HASHTRA ७५
गज वेसारी उत्सवे, जयवंताजी, पधारवा निज गेह गुणवंताजी । ___ माउलो ससरो पूरवे, जयवंताजी, भोग भला घरी नेह गुणवंताजी ॥२॥
पुण्यपाल का आवागमन सुन महाराज श्रीपाल सामने आए और अपने मामी ससुर को प्रणाम कर उन्हें बड़े आदर से अन्दर ले गये | पुण्यपाल जमाई का विनीन स्वभाव, रूप-सौन्दर्य देख चकित हो गए। मारे हर्ष उनका हृदय गदगद हो गया। वाह रे वाह क्या बात है ! "त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवोपि न जानानि" स्त्री का चरित्र और पुरुष का भाग्य कौन जान सकता है ? भविष्य के गर्भ में क्या है ? यह सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं । मयणा ! तू महा भाग्यवान है, आज जमाई का मुंह देख मेरा हृदय ठर गया ।
मयणासुन्दरी ने आगे बढ़कर अपने मामा पुण्यपाल के चरणस्पर्श किये । घुण्यपाल - जमाईराज ! धन्य है, आपने बचपन में अनेक कष्ट सहे। विपदा के बादल आपके भौहों पर सल तक नहीं डाल सके। हम आशा करते हैं कि आप भविष्य में एक महान् व्यक्ति होंगे | आपसे हमें बहुत कुछ आशा है । अत्र अपने यहाँ पधारने
की कृपा करें । पुण्यपाल दोनों पति-पत्नी को बड़ी धूम-धामसे हाथी पर बैठाकर __अपने महल में ले गए और उन के ठहरने आदि की व्यवस्था की।
एक दिन बेठा मालिये, जयवंताजी, मयणा ने श्रीपाल गुणवंताजी। वाजे छंदे नव नवे, जयवंताजी, मादल भुगल ताल गुणवंताजी ॥३॥ गय राणी रंगे जुवे, जयवंताजी, थेई थेई नाचे पात्र गुणवंताजी। भरह भेद भावे भला, जयवंताजी, वाले पर परि गात्र गुणवंताजी || इण अवसर स्यवाड़ी थी, जयवंताजी, पाछो वलियो गय गुणवंताजो । नृत्य सुणी उभो स्यो, जयवंताजो, प्रजापाल तिण ठाय गुणवंताजी ||५|| सुख भोगवतां स्वर्गनां, जयवंताजी, दीठां स्त्री भर्तार गुणवन्ताजी। नयणे लाग्या निरखवा, जयवंताजी, चित्त चमक्यो तिणीवार गुण ॥६॥ तत्क्षण मयणा ओखली, जयवंताजी, मन उपज्यो संताप गुणवंताजी। अवर कोई वर पेखियो, जयवंताजी, है है प्रकटयु पाप, गुणवन्ताजी ॥७]