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राजबाट के ठाठ से बढ़कर समझे ताहि । शीलवान संतोपयुत, जो ज्ञानी ॥ हिन्दी अनुवाद सहित सदन ६५
अजितसेन सत्ता का लोभ संवरण न कर सका, उसकी चालबाजी ने राजमाता के वैधव्य घाव पर नमक का काम किया । विद्रोह की आग भड़क उठी । मंत्री को गुप्तचर से पता लगा कि सम्राट् श्रीपाल की कुशल नहीं ।
किमfer मंत्रीसर लही रे, ते वैरी नी बात ।
गणी ने आवी कहे रे, नासो लई अधरात । देखो ० ||५||
जो जाशो तो जीवशो रे, सुत जीवाड़ण काज | कुंवर जो कुशलो हशे रे, तो वली करशो राज । देखो ० ||६|| गणी नाठी एकली रे, पुत्र चड़ावी केड़ | उबटे उजानी पड़े रे, विषम जिहाँ छे वेड़ | देखो || || खावर भाखर खोह | अजगर ऊंदर गोह | देखो ० || || घोर अंधार ।
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जास जड़ोजड़ झांखगं रे, फणिवर मणिधर ज्यां फरे रे, उजड़ अबला रडवडे रे, रयणी चरणे खंचे कांकरा रे, वहे लोही नी धार । देखो ० ||९|| वर वाघ ने बड़ी रे, सोर करे शीयाल | | चोर चरण ने चीरा रे, दिये उछलती फाल। देखो ० ||१०|| धू घू घृ घूअर करे रे, वानर पाड़े हीक । खल खल पवत थीं पड़े रे, नदी निर्झरण नीक | देखो ० ॥ ११ ॥ बलि बेउनु आउखु रे, सत्य शियल संधान । बखत बलो कंवर बड़ा रे, तिथे न करे कोई बात | देवीं ० ||१२|| रयण हिंडोले हींती रे, सूती सावन खाट | तस सिर इम वेला पड़ी रे, पड़ो देव सिर दाट | देखो ० ।।
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वेत्राणजी ! प्रधानमंत्री ने मेरे से आकर कहा, अजितसेन ने एक षड्यंत्र रचा है, महाराज श्रीपाल के अनिष्ट की संभावना है, अतः आप शीघ्र ही इसी समय यहाँ से चल दें | परिस्थिति