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________________ जिन रोकड़ चिन्ता तजी, जाना आतम भाव । उन की मुद्रा देखकर कर होत समभाय ।। हिन्दी अनुवाद सहित 40% ---% %- RRE२ ६७ यमराज ने बड़ी निर्दयता से कुचल डाला । पतिदेव के पेट में दर्द हुआ, शूल चली, मिनिटों में चट पट हो गए । हमें रोते बिलखते छोड़ वे चल बसे । कञ्चन के आसन, बासन सब कञ्चन के, कम्चन के पलंगअमानत ही धरे रहे। हाथी हुड़मालन में, घोड़े घुड़सालन में, बंद जामदानन में कपड़े भी धरे रहे ।। सेवक सेविका अरुदौलत का पारनहीं, जवाहरात के डिब्बों पर ताले ही जड़े रहे। यह देह छोड़ कर लंब हुए प्राण जब, कुल के कुटम्बी सब रोते ही खड़े रहे ।। मेरा सुहाग लुट गया । मैं दो घड़ी पतिदेव के पास बैठ आमोद-प्रमोद की बातें करती, उनकी सेवा-शुश्रुपा कर अघ हरती । किन्तु उनके वियोग से पगली बन मैंने उन्हें कहा, नाथ ! श्रीपाल का राज्याभिषेक किये बगैर ही आप चल बसे ! ऐसी जल्दी क्या थी, यदि आप देश विदेश पधारते तो मैं झरोखे में पैठ, द्वार पर खड़ी रह कर आपकी प्रतीक्षा करती, किन्तु महा-यात्रा से आज तक कौन लोटा है ? अब हमारी सुध कौन लेगा? विवश हो चुप होना पड़ा। हाय ! आज भी विरह की घनघोर बड़ी रातें हृदय को विदीर्ण किये बिना नहीं रहतीं । रोती हिये फाटती, कमला करे विलाप । मतिसागर मंत्री तिसे, इम समझावे आप ॥६॥ हवे हियड़ो काठो करी, सकल सम्भालो काज । पुत्र तुमारो नानड़ो, रोता न रहे राज ||5|| कमला कहे मंत्री प्रते, हवे तुमे आधार । राज्य दई श्रीपाल ने, सफल करो अधिकार ॥८॥ मंत्री - रानीजी ! हमारे दुर्भाग्य है कि सम्राट अचानक चल बसे | क्या किया जाय Death defies the doctor मृत्यु की दवा नहीं । एक सत्पुरुष वीर क्षत्रिय की मृत्यु पर इस तरह रंज करना, रोना-पीटना उचित नहीं । राजकुमार पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा । चिंता छोड़ कृपया आप अपने कर्तव्य की ओर ध्यान दें। रोना उसके लिये, जो बुरे कर्म कर मरता है। रोना उसके लिये. जो परधन ईर्षा से जलता है ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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