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________________ द्रव्य मोह अच्छा नहीं, जानत सकल जहान | फिर भी पैसे के लिये, करन कुकर्म अजान ॥ ६६ ०%%* * % %%* ॐ श्रीपाल राम की विपुल संपत्ति प्रदान की पश्चात् नाम-संस्करण की विधि कर बच्चे की बुआ ने सर्वानुमत से मेरे लाल का नाम श्रीपाल रखा । श्रीमान् विनयविजयजी महाराज कहते हैं कि श्रीपाल रास की यह नवमी बाल सम्पूर्ण हुई । पाठक और श्रोताओं के घर सदा आनन्द मंगल होने दोहा पांच वरस नो जब हुओ, ते कुँवर श्रीपाल । ताम शूल रोगे करी, पिता पहोतो काल ॥१॥ शिर कूटे पीटे हियो, रोवे सकल परिवार । स्वामी ते माया तजी, कुण करशे अम सार ॥२॥ गयो विदेशे बाहुड़े, वहालां कोईक वार | इण वाटे बोलाविया, कोई न मले बींजी वार ॥ ३ ॥ | हे जे हँसी बोलावता, जे क्षण मां केई बार । नजर न मंडे ते सजन, फूटे न हिया गमार ॥४॥ नेह न आण्यो मागे, पुत्र न थाप्यो पाट | एवड़ी उतावल करी, शृं चाल्या इण वाट ||५|| कमलप्रभा - वैवाणजी ! आनन्द के दिन बहुत जल्दी बीत जाते हैं। धीरे धीरे बात की बात में पांच वर्ष पूरे होने आए । प्राणनाथ श्रीपाल के लिये सोचते, अत्र चिन्ता नहीं, बच्चा सयाना होने लगा है। इसका विनीत स्वभाव, निर्मल बुद्धि, स्मरणशक्ति देख ये कहते, हमें इससे बहुत कुछ आशा है । समय करे नर क्या करे, समय समय की बात | किसी समय के दिन वड़े, किसी समय की रात ॥ कमलप्रभा - वेवाणजी ! मनुष्य सोचता क्या है और होता कुछ और ही हैं। मेरे प्राणनाथ के मन की उमंगें, और श्रीपाल के भव्य भविष्य को सहसा एक दिन
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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