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शेकड़ की चिन्ता किये, दुःखो सकल संसार । पर पदार्थ निज मान कर, नहीं पाक्न भव पार ।। हिन्दी अनुवाद सहित * *** - -
ॐ२ ६५ सदा भयकम्पित रहते थे। किन्तु फिर भी आनी ढलती य देख चिन्तित थे । उन्हें राजपाट भोग-उपभोग के साधन निरस मालूम होते थे | प्राणनाथको उदास देख मेरा मन भी खिन्न रहता, क्यों कि मेरी गोद मनी थी । हमारे बाद क्या होगा यही एक समस्या थी।
मेरे बड़े भाई कोकण देश के महाराज वसुपाल हमें समझाते धीर बंधाते; फिर भी जीव का स्वभाव, मोह ममता पीछा नहीं छोड़ती। बांझपन के कलंक से मुक्त होने के यंत्र, मंत्र, तंत्र औषधादि अनेक उपाय किये। जिस प्रकार विद्या-अध्ययन से विवेक की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार हमारा श्रम सफल हुआ। वर्षों के बाद हमारे घर पालना बंधा । पुत्रजन्म की बधाई सुन नागरिक और महाराजा आनंदविभोर हो उठे। चारों ओर मंगल गीतों की स्वर लहरी, ढोल-नगारे शहनाइयों से आकाश गुंज उठा, ध्वजा पताकाएं वंदनवार बांधी गई।
गजा मन उल्लट घणो रे, दान दिये लख काड़ी से। वैरी पण संतोशिया रे, चंदिखाना छोड़ी रे ॥१२॥ जुओ०
धवल मंगल दिये सुन्दरी रे, वाजे ढोल निशाण रे।
नाटक होवे नवनवा रे, महोत्सव अधिक मडाण रे ।।१३॥जुआ. न्याति सजन महु नोतर्या रे, भोजन षट्रम पाक रे । पार नहीं पकवान नो रे, शालि सुरहां घृत शाक रे |९४॥ जुओ०
भूषण अम्बर पहेगमणी रे, श्रीफल कुसुम तंबोल रे ।
केशर तिलक वली छांटगा रे, चंदन चूआ रङ्गरोल रे॥१५|| जुओ० गजरमणी अम पालशे रे, पुण्य लयो ए बाल रे। सजन भूआ मली तेहन रे, नाम ठवे श्रो ॥१६।। जुओ०
राम रूदो श्रीपाल नो रे, तेहनी नवमी दाल । विनय कहे श्रोता घरे रे, होजो मंगल माल रे ॥१७॥ जुओ०
महाराज सिंहरथ ने पुत्र जन्मोत्सव के उपलक्ष में अनेक प्रकार के नाटक भजन कीर्तन संगीत आदि मनोरंजन के कार्यक्रम रखे, नागरिक तथा गणमान्य विद्वानों को प्रीतिभोज दे उनका स्वागत किया। चंदी-गृह से कैदियों को मुक्त कर जनता की भलाई के लिये लाखों करोड़ो