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________________ परिग्रह दुःख की खान है, चैन न इस में लेश । इस के वश में है मभी, ब्रह्मा विष्णु महेश ६४%%****KHARA२ श्रीपाल रास सुणवा अम इच्छा घणी रे, एहना कुल घर वंश रे। प्रेमे तेह प्रकाशिये रे, जिम हिंसे अम हंश रे ॥५|| जुओ० कमलप्रभा-वेवाणजी ! धन्य है आपके जीवन और वंश को जिन प्रकार सुई, धागे से सुन्दर बेल बूटे बनाकर वस्त्र की कायापलट कर देती है, उसी प्रकार आपकी इस लाडिला बटीने अपनी तीक्ष्ण बुद्धिस मेरे लाल श्रीपाल को नवजीवन दिया और उसे श्री जैनधर्म का मर्म समझाकर हमारे वंश की लाज रख उसकी शोभा बढ़ाई । बहको शतशः धन्यवाद है । . रूपसुन्दरी-हा ! कर्म के लेख बानी बिना कौन बांच सकता है ? हमारा महान मौभाग्य है कि हमें ऐसे सुन्दर आदर्श नररत्न जमाईजी मिले । आप इनके निवामस्थान आदि का परिचय देने का कष्ट करोगी? कहे कमला रूपा सुणो रे, अंग अनूपम देश रे। तिहां चंपानगर्ग भली रे, जिहां नहीं पाप प्रवेश रे ॥६॥ जुओ० तेह नगरनो गणियो रे, राज गुणे अभिराम रे। सिंह थकी ग्थ जोड़ता रे, प्रकट होसे तस नाम रे ।।जा जुओ० गणी तस कमलप्रभा रे, अंग धरे गुण सेण रे।। कोंकण देश नरिंद नो रे जे सुणीये लघु बहेन रे ॥८|| जुओ० राजा मन चिंता घणी रे, पुत्र नहीं अम कोय रे । राणो पण आरति करे रे, निश दिन झुरे दोय रे ||९|| जुओ० देव देहरडां मानता रे, इच्छतां पूछतां एक रे। राणी सुत जनम्यो यथा रे, विद्या जणे विवेक रे ॥१०॥ जुओ० नगर लोक सवि हरखिया रे, घर घर तोरण त्राट रे । आवे घणा वधामणा रे, शणगार्या घर हाट रे ॥११॥ जुओ० कमलप्रभा का परिचय कमलप्रभा-वाणजी ! अंगदेश की प्रसिद्ध नगरी चम्पापुरीके सम्राट सिंहस्थ बड़ उदारचेता दानवीर यशस्वी थे। राज्य में चारों ओर उनकी बड़ी धाक थी. चोर लुटेरे डाकू उनमें म
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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