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________________ एकोऽहं की टन से, एक होय नहीं भाव । मोह ममता त्यागे धिना, पावे न सत्य स्वभाव ॥ हिन्दी अनुवाद सहित ETHERSHERERAK ६३ तिहां आवी बेठा मली, चारे चतुर सुजाण । जे दिन स्व जन तेलाबड़ो, धन ते दिन सुविहाण ॥१२॥ मयणाना मुखथी सुणी, सघलो ते अवदात । रूपसुंदरी सु प्रसन्न थई, हियड़े हर्ष न मात ॥१३॥ मयणासुन्दरी ने राणी के चरण स्पर्श कर कहा -- माताजी ! देव दरबार में संकल्प विकल्प कैसा ? जिन मंदिर के प्रवेशद्वार पर आरंभ-समारंभ-दुर्धान आदि का त्याग कर दिया जाता है, अतः यहां बातचीत करना उचित नहीं। कृपया आप अपने निवासस्थान पधारें | आप रंज न करें। वह घड़ी धन्य होगी जब कि अपने वियोगी हृदर का पुनर्मिलन र होगा एक दूसरे के निकट बैठ शान्ति से बात-चीन करेंगे। मयणासुन्दरी-माताजी ! श्री जैनधर्म, और श्री सिद्धचक्र यंत्र के प्रभाव से अब बे ददिन गए। आपको प्रापानाथके परिचय से बड़ा संतोष होगा। महारानी-मयणा ! धन्य है, तुम्हारी सद्बुद्धि श्रद्धा और साहस को । ढाल नवमी (तर्ज - गोरी नागोला रे) पर वह बेहु सासु मलो रे, करे वेवाहण वात रे । कमला रूपा ने कहे रे, धन तुम कुल विख्यात रे ॥ जुओ अगम गति पुण्यनी रे, पुण्ये वांछिन थाय रे । सवि दुःख दूर पलाय रे, जुओ अगम गति पुण्य नी रे ॥१॥ बह अम कुल उद्धर्यु रे, कीधो अम उपकार रे।। अमने जिन धर्म बुझव्यो रे, उतायों दुःख पार रे ॥२॥ जुओ० सूई जिम दोरा प्रते रे, आणे कमी ठाम रे । तिम बहुए मुज पुत्रनी रे, घणी वधारी माम रे ॥३॥ जुओ० रूपा कहे भाग्ये लह्यो रे, अमे जमाई एह रे । रयण चिंतामणि सारीखा रे, सुन्दर तनु स स्नेह रे ॥४१॥ जुओ०
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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