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________________ जो सुख चाहे जीव तू, तब दे पर का संग । नहीं तो फिर पछतायगा, होय रंग में भा॥ हिन्दी अनुवाद सहित - RRC-RRENर ५५ धर्म क्रियाएं शान्त भाव और एकाग्र मन से करना चाहिए। यदि हो सके तो आराधना के समय मौन रख, मोह ममता, मर्मवचन, कषायादि का त्याग कर, साधु मुनिराज की सेवाभक्ति और प्रति दिन पंचामृत (दही - दूध - घी - मिश्री और केशर ) से श्री सिद्धचक्र यंत्र का प्रक्षालन करें । पूर्णिमा के दिन व्रत-आराधक स्त्री-पुरुष और समस्त संघ मिल कर नवपद-पूजन पढ़ाएं । श्री सिद्धचक्र का ध्यान आदि विशेष भक्ति करें । सुदि सातम थीं इणी परे; चैत्री पूनम सीम रे । ओली एह आराधिये, नव आंक्लिनी नीम रे चेतन ॥२३॥ एम एक्यासी आंबिले, ओली नव निरमाय रे ।। सादा चार संवत्सरे, ए तप पूरण थाय रे चेतन० ॥२४॥ उजमणुं पण कीजिये, शक्ति तणे अनुसार रे । इह भव पर भव सुख घणा, पामीजे भव पार रे चेतन० ॥२५॥ इस यंत्र की आराधना सविधि इक्यासी आयंबिल करने से होती है । पुरुष क्रमशः साढ़ चार वर्ष में और त्रिपा प्रमूति आदि के कारण पांच वर्ष में पूर्ण कर यथाशकि उजमणादि करें। आराधना फल एहना, इह भव आए अखंड रे | रोग दोहग दुःख उपशमे, जिम घन पवन प्रचंड रे चेतन० ॥२६॥ नमण जले सिद्धचक्र ने, कुष्ट असारे जाय रे । वाय चोरासी उपसमे, रूझे गुंबड़ धाय रे चेतन ॥२७॥ भीम भगंदर भय टले, जाय जलोदर दूर रे । व्याधि विविध विष वेदना, ज्वर थाए चक चूर रे चेतन ॥२८॥ खास खयन खस चक्षुना, रोग मिटे सन्निपात रे । चोर चरड़ डर डाकिणी कोई न करे उपघात रे चेतन० ॥२९॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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