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छोड़ो पर की संगति, शोधो निज परिणाम । ऐसो ही करणी करो, पाओगे शिवधाम ।।
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श्रीपाल रास
रे ।
ata हरस ने हेड़की, नाड़ा ने नासूर पाठा पीड़ा पेट नी टले, दुःख दंतना सूल रे, चेतन० ॥ २९ ॥ निर्धनिया धन संपजे, अपुत्र पुत्रिया होय रे । विण केवल सिद्धयंत्र ना, गुण न शके करी कोय रे, चेतन० ॥ ३० ॥ रास रूयों श्रीपाल नो तेहनी सातमी ढाल रे । विनय कहे श्रोता घरे, होजो मंगल माल रे चेतन० ॥३१॥
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क्या आप मानसिक चिन्ताएं, उदासी, दुःख-दर्द आर्थिक संकट से अपना पीछा छुड़ाना चाहते हैं ? तो आप आज ही दृढ़ संकल्प कर लें कि में शीघ्र ही नवपद ओली अवश्य करूंगा ।
आश्विन या चैत्र शुक्ला में व्रत आरंभ कर दें। जिस प्रकार आंधी घनघोर घटाओं को छिन्नभिन्न कर देती है, सूर्य सारे संसार को अपने प्रकाश से जगमगा देता है, उसी प्रकार आपके कर्म मूल को नष्ट कर सोए भाग्य को चमकाने का सरल और सुन्दर साधन हैं श्री सिद्धचक्र यंत्र आराधन |
इस यंत्र के प्रक्षालन जल से अठारह प्रकार के कुष्ट, चौरासी प्रकार के बात रोग, फोड़े फुन्सियां, जलंदर, जगंदर, दंतशूल, नेत्रपीड़ा, उदरशूल, बवासीर, खाज, खुजली, नासूर इत्यादि रोगों का सहज ही उपशमन होने लगता है, भूत-प्रेत, डाकन, चूड़ेलों के उपद्रव दूर हो जाते हैं, नवपद आराधक स्त्री-पुरुष धनधान्य, पुत्रादि सौभाग्य प्राप्त कर यशस्वी बनते हैं ।
श्रीमान् विनयविजयजी महाराज कहते हैं कि महान प्रभाविक सिद्धचक्र यंत्र के अपार गुणों का पार श्री सर्वज्ञदेव के बिना कौन पा सकता है ? | श्रीपाल रास की यह सातवी ढाल सम्पूर्ण हुई । श्रोतागण और पाठकों के घर सदैव आनन्द मंगल होवे ।
दोहा श्री मुनिचन्द्र मुनिश्वरे, सिद्ध यंत्र कगै दीध | इह भव पर भव एह थी, फलशे वांछित सिद्ध ||१|| श्री गुरु श्रावक ने कहे, ए बेउ सुगुण निधान । कोइक अवसर पामिए, सेवो थई सावधान ||२||