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________________ पर का मोह छोड़ दो, जो, चाहो सुत्र रोति । यही दुःख का मूल है, कहना है सद् नीति ॥ ५४ *****SHARERAKHRS श्रीपाल रास निर्मल भूमि संथारिये, परिये शोल जगीश रे । जपिये एक एकनी, नोकरवाली वीश रे चेतनः ॥१९॥ * आटे थोईए देव वांदिये रे, देव सदा त्रण काल रे । पडिकमणा दोय कीजीये रे, गुरु वैयावच्च सार रे चेतन० ॥२०॥ काया वश करी गखिये, वचन विचारी बोल रे। ध्यान धर्मनुं धारिये मनसा कीजे अडोल रे चेतन० ॥२१॥ पंचामृत करि एकठा परि गल कीजे पखाल रे। नवमे दिन सिद्धचक्रनी, कीजे भक्ति विशाल रे चेतन० ॥२२॥ श्री सिद्धचक्र आगधन श्री सिद्धचक्र आराधन का दूसरा नाम है नवपद ओली । इस की आराधना वर्ष में दो बार आश्विन शुक्ला सप्तमी और चैत्र शुक्ला सप्तमी से प्रारंभ होती हैं । सप्तमी से पूर्णिमा तक अष्टकारी जिनपूजन प्रत्येक पद के जितने गुण हों उतने ही स्वस्तिक, प्रदक्षिणा, खमासमण, वीस माला, त्रिकाल देववंदन, आयंबिल प्रतिक्रमणादि * " माठ थोईए देव यांदिये रे" यह एक एकान्त अभिप्राय है। क्यों कि विक्रम संवत १४२८ में रचित श्रीमान् रत्नशेखरसूरिजी की प्राकृत धोपाल-कथा; विक्रम संवत् १५१४ में रचित श्रीमान् सत्यराजगणि के संस्कृत श्रीपाल चरित्र और विक्रम संवत् १७४० में रचित श्री जिनहर्ष पणिवयं के श्रीपाल-रास में तथा अनेक दिगंबर, श्वेताम्बर श्रीपालचरित्र और नाटकों में कहीं भी अंश मात्र ऐसी चर्चा या आग्रहपूर्ण उल्लेख-वर्णन नहीं है कि माठ घुई से ही देव वंदन करे, वही माराधक है, अन्य नहीं । श्री जैनागम सूत्र, नियुक्ति, भाष्य चूर्णी और टीका तथा चैत्यवंदन-पंचाशक आदि ग्रंथों में देववंदन करने की विधि सापेक्ष है। जैसे कि श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छ को समाचारी छ: पई से देववंदन करने की है तो खरतर गच्छ, पायचद गच्छ, अंचल गच्छ का विधि-विधान एक दूसरे से भिन्न है। अतः विधि-विधान के लिए आपस में वैर-विरोध से बचकर त्याग, तप, विशुद्ध सम्यग्दर्शन की ओर आगे बढ़ना ही कल्याण मार्ग हे। एक बार प्रभु वंदना रे, आगम रीते थाय || जि० कारण सते कार्यनी रे, सिद्धि प्रतीत कराय ॥ जि० ॥ ५ ॥ प्रभु पणे प्रभु ओलखी रे, अमल विमल गुण गेह ॥ जि. साध्य दृष्टि साधक पणे रे, चंदे धन्य नर तेह ॥ जि० ॥ ६ ॥ जन्म कृतारथ तेहनो रे, दिवस सफल पा तास ॥ जि. जगत शरण जिन चरणने रे, वंदे धरीय उल्लास ।। जि० ॥ ७ ॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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