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सबसे सुखीं इस जगत में रहता है वह जीव । पर को संगति छोड़ का, निज में है जो जीव ॥ हिन्दी अनुवाद सहित -
र ५३
श्री मुनिचन्द्र गुरुए तिहां, आगम ग्रंथ विलोई रे । माखनी परे उद्धर्यो, सिद्धचक यंत्र जोई रे, चेतन० ||१३|| अरिहंतादिक नव पदे ॐ ह्रीं पद संयुक्त रे ।
अवर मंत्राक्षर अभिनवा, लहिए गुरुगम तत्त रे, चेतन० ||१४|| सिद्धादिक पद चिह्न दिशे, मध्ये अरिहंत देव रे । दरिसण नाण चति ते तप चिहुँ विदिश सेव रे, चेतन० ||१५|| अष्ट कमल दल इणि परे, यंत्र सकल शिस्ताज |
निर्मल तन मन सेवतां, सारे वांछित काज रे चेतन० ११६ ॥ मयणासुन्दरी - गुरुदेव ! संत महात्माओं के आशीर्वाद और उन के सत्संग से क्या नहीं होता ? आप का अभिप्राय है कि अब ऊँवर राणा ( मेरे पतिदेव ) का भाग्योदय दूर नहीं | इन से श्री जिनशासनकी महान् प्रभावना होना संभव हैं । यह मेरा अहोभाग्य है । मैं आप की इस सिद्धवाणी के लिए बहुत ही आभारी हूं । किन्तु इस समय तो इन की असह्य वेदना देखी नहीं जाती । भगवान्! भगवान् ! ' गुरुदेव ! कोई उचित उपाय कर हमें इस संकट से बचाए ।
मुनिचंद्रसूरिजी -मयणासुन्दरी ! यह हमारा आचार नहीं । जैन मुनि सदा जादूटोना गण्डे ताविज के प्रपंच से दूर रहते हैं। मानव भूल कर भी इस मायाजाल में न फँसे, हजारों व्यक्ति इस में उलझकर अपने सर्वस्व से हाथ धो बैठे हैं । दुःख-सुख तो एक शुभ-अशुभ कर्मों का विकार है। इस से छुटकारा पाए बिना आज तक न किसी को सुख-शांति मिली है और न भविष्य में मिलना ही संभव है । यदि तुम्हारे हृदय में ऊबरराणा के स्वास्थ्य और सुख-शांति की शुभकामना है तो इस का एक ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है कि आप शतं विहाय स-विधि श्री सिद्धचक की आराधना करो ।
आमो मांहे मांडिये, सातमधी तप एह रे ।
नव आयंबिल करी निर्मला, आराधो गुण गेह रे, चेतन० ||१७|| विधि पूर्वक करीं धोतिया, जिन पूजो व्रण काल रे ।
पूजा अष्ट प्रकारनी, कीजे थई उजपाल रे चेतन० ॥१८॥