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जिस की चाहत तू सदा, वह कभी न तेरा होय स्वार्थ साध कर अलग हुए, बात न पूछो कोय ।। ५२ %%%%%*****
२% के श्रीपाल रास
गुरु कहे दुःख न आणजो, ओल्छु अंश न भाव रे । चितामणी तुज कर चढ्यो, धर्म तणे परभाव रे चेतन० ॥ ८ ॥ वड़बखती वर एह छे, होशे गया राय रे । शासन सोह वधारशे, जग नमशे एह पाय रे चेतन० ||९|| प्रवचन समाप्त होने पर गुरुदेव ने कहा मयणा ! सदा तुम दास-दासियों से घिरी रहती, तस्वचर्चा करती थी, आज कुछ सुस्त और अकेली कैसे ? ये महानुभाव कौन हैं ? इनका परिचय ? मयणासुन्दरीने मुस्कराकर नीची दृष्टि कर ली । राणा का परिचय देते समय उसकी आंखों में आंसू भर आए। उसकी जिह्वा स्तब्ध हो गई ।
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मुनिश्री मयणा ! तुम चिंता न करो। सदा किसी का समय एक सा नहीं रहता है। रात्रि के बाद सूर्योदय होगा निति है। दुख य की कसौटी है । जो भले हैं, उन का गौरव दुःख-रूपी कसौ पर चड़ने से दूना बढ़ जाता है। राम को बनवास न होता, तो वे मर्यादा पुरुषोत्तम न कहलाते । हरिश्चन्द्र पर विपत्ति न पड़ती तो उनका चरित्र इतना उज्वल दिखाई न देता | सीता की छिपी हुई कीर्ति दुःख पड़ने से ही चांदनी की तरह अब तक चारों ओर व्याप्त हैं ।
गुरुदेव ! मुझे और कोई चिन्ता नहीं । केवल दुःख यही हैं कि ये वे समझ लोग मेरे निमित्त से अनर्गल भद्दे शब्दों का प्रयोग कर श्री जिन शासन की अवहेलना करते हैं । मुनिश्री ने राणा का सिर से पैर तक निरीक्षण कर कहा-मयणा । निंदा की कोई बात नहीं । यदि कोई बेसमझ मानव आग से चिड़ कर उसे दो घूंसे टिका दे, नेत्ररोगी यदि चमकते सूर्य पर मुट्ठीभर धूल डालने की चेष्टा करे तो भला उसका परिणाम क्या होगा ? तुम्हारा महान् सौभाग्य है, ये महानुभाव सामान्य व्यक्ति नहीं, चमकते चान्द हैं। इनसे श्री जैन शासन की महान प्रभावना होने की संभावना है। ये भविष्य में राज राजेश्वर होगे |
मयणा गुरु ने विनवे, देई आगम उपयोग रे ।
करी उपाय निवारिये, तुम श्रावक तनु रोग रे चेतन० ||१०|| सूरि कहे ए साधु नो, उत्तम नीं आचार रे I यंत्र जड़ो मणि मंत्र जे, औषध ने उपचार रे चेतनं०] ||११|| पण सुपुरुष एह थी, धाशे धर्म उद्योत रे ।
तेणे एक यंत्र प्रकाशसु, जस जग जागति ज्योत रे, चेतन० ॥१२॥