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________________ यह संसार महा प्रबल, इस में देरी दोय। पर में निज की कल्पना आप रूप निज बोय ॥ हिन्दी अनुवाद सहित 52460R २ ५५ ढाल सातवीं (तर्ज - बास म काडो हो व्रत तणी) भमता एह संसार मां, दुलहो नर भव लाधो रे । छांडी नींद प्रमाद नीं, आप सवास्थ साधो रे । चेतन चेतो रे चेतना, आणि चित्त मझार रे ॥१॥ चेतन सामग्री सवि धर्म नी, आले जे नर खोई रे ।। माखी नी परे हाथ ते, घसतां आप विमोई बेतना जान लई बह जुगति शु, जेम कोई परणवा जाय रे । लगन वेला गई ऊँघ मां, पछी घणुं पस्ताय रे ॥३॥ चेतन जिंदगी थोड़ी है, समय उससे भी कम | जैसे जैसे समय बीतता है, वैसे वैसे हम मृत्यु के निकट पहुँचते जाते हैं। आँखे खोल कर श्यमशान की तरफ जाते हए मुरदों की तरफ देखो और सोचो कि एक दिन हमारी भी यही हालत होगी । फिर क्यों न हम अनंत भव भटकने के बाद प्राप्त अति दुर्लभ अनमोल मानव भय को सफल बना लें। __ क्या आप सुदेव सुगुरु और श्री सर्वज्ञ देव प्रणित सुधर्म का सुयोग पाकर उसे यों ही गंवा देगे ? मक्खी सड़े गले मैले-कुचले गंदे पदार्थों में लुभा, पंख फड़फड़ा हाथ मल मल कर अपने प्राण गंवा देती है। उसी प्रकार आप भी विषयवासना के कीट चन भोगोपभोग में उलझने से ही जीवन बरबाद कर हाथ मलते रह जायंगे ? आँखें बन्द कर लो। अपने हृदय पर हाथ धगे और धड़कने दिल से पूछो कि यदि में मनुष्य ई, संसार के सर्व प्राणियों से श्रेष्ठ ई तो मेरे जीवन धारण करने का क्या रहस्य है ? मैं इस संसार में क्यों आया है ? यदि कुछ है पास में तो उस का सदुपयोग करो। शोपणवृत्ति को तिलाञ्जली दे दो। आज तुम्हारे सैकड़ों भाई बहिन, स्त्री पुरुष बिल-बिला रहे हैं। वे विचारे मारे लज्जा के अपना हाथ किसी के सामने पसारना नहीं चाहते, वे अपने हृदय की ठण्डी आह किसी दूसरे को जताना नहीं चाहते, वे भीखमंगे दंभी नहीं, वे है आप के स्वधर्मी बन्धु आप उनके घरों में जाइये, उन्हें आश्वासन दे उनके दुःखदर्द की कहानी सुनिये, उनसे पूछिये कि आपके क्यों का क्या हाल है ? उनकी शिक्षा का क्या प्रबंध है ? आपकी आप - व्यय क्या है ? आप बेकार
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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