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हां में हो न मिलाइये, कीजे तत्त्व विचार । एकाको लख आमा, हो जाओ भव पार || ___५८MASALAR
50२ श्रीपाल रास मानव में सब से बड़ी भूल यह है कि वह कई बार अच्छे काम को हंसी मज़ाक या कल परसों पर टाल देता है। इसी तरह उस की सारी आयु बरबाद हो जाती है, किन्तु. कल परसों कभी नहीं आता ।
मयणा की प्रार्थना में बल था, शक्ति थी, हृदय की खरी पुकार थी। उसी समय देवाधिदेव के गले हार, हाथ का गुलदस्ता अदृश्य रूप से निकल कर राणा के पास जा पहुंचे। कई लोगों ने यह दृश्य अपनी आँखों से देखा । मयणासुन्दरी ने णमो अरिहंताणं बोल कर काउसग्ग पारा । वह समझ गई कि यह किसी देव का संकेत है। उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। वह आनंदविभोर हो गई। अब उसकी आत्मा में पूर्ण विश्वास हो गया कि आज से राणा निश्चत ही जनता के गले के हार लोकप्रिय बन कर रहेंगे। इनके धवल यश की सुगन्ध दसों दिशाओं में फैले विना न रहेगी।
श्रीमान् विनयविजय जी महाराज कहते हैं कि यह श्रीपाल रास की छठी ___ ढाल मम्पूर्ण हुइ गुणज्ञ श्रोता और पाठकों के घर सदा आनंद मंगल होवे |
दोहा पासे पोषह शाल मां, बेठा गुरु गुणवंत । कहे मयणा दिये देशना, आवो सुणिये कंत ||१|| नर नारी बेउ जणा, आव्या गुरु ने पाय । विधि पूर्वक वंदन करी, बेठा बेसण ठाय ॥२॥ धर्मलाभ देई धुरे, आणी धर्म सनेह ।
योग्य जीव जाणी हवे धर्म कहे गुरु तेह ॥३॥ मयणासुन्दरी - प्राणनाथ ! यहां पास ही उपाश्रय में पूज्य गुरुदेव विराजते हैं । दर्शन का लाभ लें । दोनों पति-पत्नी ने निसीहि णमो खमासमणाणं कह उपाश्रय में प्रवेश किया। गुरुदेव - धर्मलाभ । सविधि वंदन कर वे उचित स्थान देख बेट गए | गुरुवर ने धर्म देशना आरम्भ की ।