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पर को अपना मान फर, दुःखी होत संसार । ज्यों परछाही श्वान लख, भोंकत शारबार । हिन्दी अनुवाद सहित N
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४. इह भव पर भव तुज विना रे लो, अवरन को आधार रे जिनेसर । दुःख दोहग दूरे करो रे लो, अम सेवक साधार रे जिनेसर ति० ॥१४॥ कुसुम माल निज कंठ थी रे लो, हाथ तणुं फल दीधरे जिनेसर | प्रभु पसाय सहु देखता रे लो, उंबर ए बेउलीध रे जिनेमरति०॥१५|| मयणा काउसग्ग पारियो रे लो, हियड़े हर्ष न माय रे जिनेसर । एसही शासन देवता रे लो, कीधो अम सुमसाय रे जिनेसर ति० ॥१६॥
सुगुण गस श्री पाल नो रे लो, तिहां ए छट्ठी दाल रे जिनेसर । विनय कहे श्रोता घरे रे लो, हो जो मंगल माल रे जिनेसर ति॥१७॥
मरणासुन्दरी ने अपने पतिदेव के साथ चैत्यवंदन विधि कर काउसग्ग ध्यान में प्रार्थना की हे प्रभो ! आप हम पर ऐसी कृपा करें कि हमारा चंचल मन अनेक संकल्प विकल्प की भूल-भुलेया में न भटक कर सदैव आप के प्रेमरस का पान करता रहें।
परम कृपालु ! काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, शारीरिक रोग और चिंता आदि विकार हमारे निकट न आने पाएं । भवोभव में हमें एक मात्र आप का ही सहारा है। पतिदेव को आरोग्यता, पूर्ण शान्ति और विशुद्ध सम्यक्त्य की प्राप्ति हो ।
प्रार्थना में अनंत चल अतुल शक्ति है, करने वाला चाहिये । सच्चे हृदय से की हुई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती। जब तक हम उस शक्ति को नहीं पहचानते तब तक हमारा जीवन निरस और शून्य है। ठीक उसी तरह जैसे फूल तब तक हमारे लिये बेकार है, जब तक हम उसकी सुन्दरता और सुगन्ध का आनन्द नहीं जान पाते । थाली में स्वादिष्ट भोजन रखा है, यदि जीमने वाला न हो तो इस में भोजन का क्या दोष ? फरना तथा सूत्र और (९। योग मुद्रा से नपत्थूणं, जाति चेक, जावत केवि. और जयवोयराम बोलना । (१०) जावंत चेई० जावत के वि० और जयवियराय इन तीनों का नाम प्रणिघान सूत्र है। पांच अभिगम:
(१) सचित्त फल फलादि का त्याग, (२) अचित्त ढाल, तलवार, चंवर छत्र बहु मूल्य नगदरकम मदिर उपाथ में जाते समय साथ न रखना (३) मन, वचन और काया को स्थिर रस्सना । (४) उत्तरासन से भूमि प्रमाणन कर श्री देव, गुरु को वंदन करना । (५) वीतराग देव को देख निसोहि णमो जिणा और उपाश्रय में प्रवेश करते ही उच्च स्वर से निसीहि णमो खमासमणाणं कहना।