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समय गया कुछ किया नहीं, नहीं जाना निज सार । पर परिणति में मग्न हो, सहते दुःख अपार ||
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श्रीपाल रास
राणा - जिन दर्शन की विधि क्या है ?
मयणासुन्दरी - प्राणनाथ ! जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करते समय दश त्रिक* और पांच अभिगम का लक्ष्य रखना आवश्यक है ।
पूजन का थाल ले नवदम्पती ने निसीहिणमो जिणाणं कह कर मंदिर में प्रवेश क्रिया | शांत मूर्ति श्री ऋषभदेव स्वामी के दर्शन कर राणा का हृदय प्रफुल्लित हो उठा, वे हाथ जोड़ मयणासुंदरी के साथ देवाधिदेव की स्तुति करने लगे ।
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झल हल ज्योति स्वरूप हो, केवल कृपा निधान । चरण शरण आए प्रभो, भय भंजन भगवान ||१|| अविनाशी अरिहंत तू तत्र उपकार महान् । क्लेशहरण चिंता चरण, भय भंजन भगवान ॥ २ ॥ क्षण क्षण मम अधीरता, हृदय भरा अभिमान । इन से मुक्ति दो हमें, भय भंजन भगवान ॥ ३॥ आधि व्याधि उपाधि है, काम क्रोध बलवान | दयानिधि करुणा करो भय भंजन भगवान ॥ ४ ॥ हर आलस दरिद्रता, हरो तिमिर अज्ञान । सम्यग्दर्शन पाएं हम, भय भंजन भगवान || ५ || मयणासुन्दरी - प्राणनाथ ! आप रोगग्रस्त हैं अतः पूजन तो हो न सकेगी । कृपया आप सभा मण्डप में बैठ ध्यान करें। मैं श्री जिनेन्द्र देव की अष्ट प्रकारी पूजन कर लूं ।
मयणासुन्दरी ने सविधि अष्ट प्रकारी पूजन कर एक सुन्दर सुगन्धित फूलों का हार भगवान के गले में पहना कर हाथ में गुलदस्ता चढ़ाया | पश्चात् वापस लौट कर सभा मण्डप में बैठ दोनों पति-पत्नी ने जगचिंतामणी आदि चेत्यवंदन विधि की ।
* दस त्रिक:
(१) तीन बार निसीहि कहना । (२) तीन बार प्रदक्षिणा (३) तीन खमासमणा देना (४) त्रिकाल पूजन (५) छद्मस्त, केवली, और सिद्ध इन तीनों अवस्थाओं का क्रमशः चितन करना (६) दिशा त्रिक इधर उधर न देखें दर्शन करते समय सिर्फ भगवान के सामने हीं अपनी दृष्टि रखना । (७) तीन बार भूमि प्रमार्जन करना (८) विधि सूत्रों का अर्थ समझ कर शुद्ध उच्चारण