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जय तक मन में बसत है, पर पदार्थ की चाह। तब तक दुःख संसार में, भले हो या शह॥ हिन्दी अनुवाद सहित -
- -*-*- र ४५ चक्रवाक दुःख चूरतो रे लो, कस्तो कमल विकाम रे वालेसर । जगत लोचन जब ऊगियो रे लो, प्रमों पुहवी प्रकाशरे वालेसर।।९।।
मुनहले बादलों में वियोगी पक्षियों को सुखद, कमल-वन को विकसित करते हुए उदीयमान सूर्य का दृश्य बड़ा सुन्दर था-मानी सूर्यदेव भूमि पर प्रकाश फैलाने के बहाने ही झांक झांक कर सती माध्वी पतिव्रत-परायणा मरणासुंदरी के मुखारविन्द के दर्शन करना चाहते हो । आवो देव जुहाखा रे लो, ऋषभ देव प्रासाद रे वालेसर । आदीश्वर मुख देखतां रे लो, नासे दुःख विषवाद रे वालेसर ॥१०॥ मयणा वयणे आश्यिो रे लो, उम्बर जिन प्रासाद रे जिनेसर ।
तिहुअण नायक तू बड़ो रे लो, तुम म अवर न कोय रे जिनेसर।।११।। मयणांए जिन पूजिया रे लो, केशर चंदन कपर रे जिनेसर । लाखीणों कंठे ठव्यो रे लो, टोडर परिमल पूर रे जिनेसर ति ॥१२॥
चैत्यवंदन करी भावना रे लो, भावे करी काउसग्ग रे जिनेसर । जय जय जग चिंतामणि रेलो, दायक शिवपुर मग्ग रे जिनेसर तिना१३||
मयणासुन्दरी - प्राणनाथ ! सूर्योदय हुआ, मंदिर पधारें । राणा - जिन दर्शन का फल क्या है ? प्राणनाथ ! दर्शन की इच्छा करने से एक उपवास, खड़े होने से दो, चलने से तीन, चलते समय मार्ग में श्री बीनराग के गुणों के चिंतन से चार, मंदिर में प्रवेश करने से पांच, देवाधिधेव जिनेन्द्र भगवान के दर्शन होते ही निसी हि णमो जिणाण कहने से पंदरह, और सविधि चैत्यवंदन करने से तीस उपवास का लाभ होता है । ... पद्म चरित्र में : - जिन मंदिर में प्रवेश करने से छः मास, दर्शन से बाग मास. पूजन से एक हजार वर्ष उपवास का लाभ तथा जिनेन्द्र भगवान के गुणगान से अनंत गुणे फल की प्राप्ति होती है ।