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________________ जर तक मन में बसत है, पर पदार्थ की चाह । तब तक दुख संमार में, भले हो वह शाह । __४५ -- -**-REARRAH श्रीपाल रास उसे पता नहीं कि सेठ का क्या हाल है। बाह्य जड़ पदार्थों में मुख की कल्पना महान् भूल हैं । यदि सेठ साहबसे एकान्त में बैठकर पूछा जाय कि श्रीमान्जी ! हृदय से सच यही, आप सुखी हैं ? रात को नींद आती है ? भोजन स्वादिष्ट लगता है ? बच्चों को रमत, गम्मत मनोविनोद के साधनों से शान्ति तो है ? उत्तर में क्या पायंगे? ___ "नारे "ना, दिल का घाव दिल ही जाने" मन पूछो बात । प्राणेश ! यह आपकी उदारता है कि आप मेरी भलाई का इतना ध्यान रखने हैं । अब में राजकुमारी नहीं, आपके चरणों की दासी हूं। पश्चिम में सूर्योदय होना, समुद्र का सीमा अतिक्रम करना असंभव है। उमी प्रकार कुलीन कन्याएं पति के चरणों में एक बार जीवन अर्पण कर अन्य बर को कामना नहीं करती हैं। कौन से हैं कार्य जिसको स्त्रियाँ करतो नहीं । कौन सी है विपदा ऐसी जिसको स्त्रियाँ सहती नहीं । विश्व में सीता सती की, कीर्ति अब भी व्याप्त है । मान आशातीत जिन से हिन्दुओं को प्राप्त है ॥ राणा - धन्य है मयणा ! तुम्हारे पतिव्रत धर्म को धन्य है । तुम्हारी विद्या, रूप-गुण और विनीत नम्र स्वभाव को धन्य है | अच्छा अब मैं तुम्हें अपना हृदय अर्पण करना है । जिस देश में जिस भूमि में, तुम सी सती हो नारियाँ । उस देश का उस भूमि का, निश्चित ही उद्धार है । जिस देश म हों गुण भरी, शिक्षित सुशील नारियों । उस देश के दुःख दूर हैं. सुख का वही संसार है ॥ राणा-प्रिये ! तुम सत्ती साध्वी हो, तुम पूजनीय देवी हो । अब मेरे दुर्दिनों का अन्न निश्चित है। दोनों पतिपत्नी आमोद-प्रमोद की बातें कर निद्रादेवी की गोद में लेट गए । उदयाचल ऊपर चढ्यो रे लो, भानु रवि परभात रे वालेमर । मयणा मुख जोगा भणी रे लो, शील अचल अवदात रे वालेसर ॥८॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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