________________
जो सुख चाहत हो मस, त्यागो पर अभिमान । आप घस्तु में रम रहो, शिव मग सुख की बान ।। ५.
RRCHA२ श्रीपाल रास तो नहीं हैं ? आपको रहने को स्थान है या नहीं ? तुम्हारे बच्चों में धार्मिक संस्कार कितने पनपे? वे धर्म के काम में, समाजसेवा में हिचकिचाते तो नहीं हैं। वे अपना सर्वस्व होमने को तैयार हैं ? वीतराग ले उपासकों में वीतरागता की कितनी झलक है ? इतना कार्य आपने किया हो तब तो आपका जीवन सार्थक है । अन्यथा धान्य के कीट धनेरिये में और आप में कोई अंतर है ?
सच कहो, अपनी अंतर आत्मा से पूछो, आप इतने बड़े हो गए, सफेदी आ गई आपने कितने स्वधर्मी बन्धुओं की सुध ली ? आप हमेशा कितने घर घूमते हैं ? आप के प्रयत्न से, आपकी प्रेरणा से कितने मानवों का मला हुआ? कितने ऊपर उठे ? असहाय की सहाय करना महान् सेवा है। आप पर्व तिथि को पौपध करते हैं ? सज्झाय की पवित्र पंक्तियां आपको क्या संदेश देती हैं ?
“परोवयारो, साहम्मिआण बच्छलं, करण दमो,
चरण परिणामो, संघोवरी बहुमाणो. पुत्थयलिहणं" कहिये ये पंक्तियां आप के होटों तक ही सीमित हैं ? या कुछ कार्य रूप में भी उपयोग में आई ? कहो किस भाव में ? किस जन्म में कार्यान्वित होंगी? या ये सारी भावनाएं आपके मन की मन में रह जाएंगी? हां ! आप बात बनाने में बड़े निपुण हैं ।
आप यही कहेंगे कि हमारी शक्ति नहीं ! इसका वास्तविक निर्णय आप अपनी अंतरात्मा से करियेगा। किन्तु कहीं ऐसा न हो कि लाड़ की घरात नो बड़ी सज धज के गई और लग्न का समय नींद में निकल जाय । अर्थात आप अपने व्याह शादी, भवन-निर्माण खान-पान-आरंभ-समारंभ में तो खुले हाथ द्रव्य खर्च कर. यदि पास में न भी हों तो किसी को भाई दादा कर कर्ज लेने में भी नहीं चूकते हैं। किन्तु जहां जनसेवा, आत्म-कल्याण, परमार्थादि काम पड़ते हैं वहां आपकी नाड़ी खिसकने लगती है। हां करेंगे, जल्दी क्या पड़ी है ? इस प्रकार आप मोह नींद में रह कर एक दिन सब यहां छोड़ छोड़ कर रवाना हो जाओगे, और अनंत भवों तक अपनी भूल का पश्चात्ताप करना पड़ेगा । अब भी अवसर है, चेत जाओ । धर्मध्यान, परमार्थ का अपना मानव जीवन सफल बनाओ।
आप हृदय से कहते हैं, धन नहीं हैं ? चिंता नहीं। निराश न हो, साधना के कई मार्ग हैं। आपकी सम्पत्ति है तन और मन । इन का महत्त्व धन से कम नहीं । आप इन के बल पर बहुत कुछ कर सकते हैं। आगे बढ़ी, नवयुग का निर्माण ऋगे।