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________________ उपादान निज आत्मा, अन्य सर्व परिहार | स्वात्म रसिक बिन होय नहीं, नौका भवदयि पार ॥ ४२ 9454645 7 श्रीपाल रास राणा कुछ चिन्तित थे, उनके मुंह से लारें हाथ-पैरों से रक्त और पीप की बूंदें टपकती देख मयणासुन्दरी ने कपड़े से उसे साफ करने को हाथ लम्बा किया कि तुरन्त ही रागा ने कहा - राजकुमारी ठहरो! ठहरो !! जल्दी न करो। तुम बुरी तरह से ठगी जा रही हो। तुम्हारे पिता ने तुम्हारे साथ घोर अन्याय किया है । दाम्पत्य जीवन हंसीखेल नहीं, यह एक जीवन का सौदा है। तलवार की तीक्ष्ण धार पर चलना इतना कठिन नहीं जितना कि दाम्पत्य जीवन । आवेश में आ अपना जीवन नष्ट न करो। ठीक तरह से सोच विचार कर आगे कदम बढ़ाओ। क्षणिक भूल लज्जा भविष्य में चिन्ता का पिटारा बन जायगी। अब भी समय है। मुझे तुम्हारी कंचन सी काया, चान्द सा मुख, कोयल सा मधुर कंठ, मृग नयन, विनम्र स्वभाव, भोलेपन पर बड़ा तरस आता है। यह प्रत्यक्ष है कि मेरे संसर्ग से तुम्हारा रूप-रंग-सौन्दर्य शीघ्र ही मुझी जायगा। तुम असह्य वेदना की शिकार चन पछताओगी, एक कोदी के साथ सुकमाल राजदुलारी का संबन्ध कैसे निभ सकेगा ? रंगीली मयणा । भला के बुरा कुछ काम कीजे, किन्तु पूर्वापर सोच लीजे। बिना विचारे यदि कार्य होगा, कभी न अच्छा परिणाम होगा । तुम शीघ्र ही लौट जाओ। ममतामयी मां का हृदय तुम्हें कभी छह नहीं देगा। __ यह तुम्हें गले लगा उचित व्यवस्था करेगी । इसी में तुम्हारा भला है। मेरी गत जन्मों की भूलों का यहा प्रत्यक्ष फल तुम्हारे सामने हैं। मैं अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारे जीवन को कुचलना नहीं चाहता : अब तक तुम्हारा जीवन राजमहल में बीता है । देखो यहां : न कोमल स्वच्छ सैया है, न टिकने का ठिकाना है । न सेवक है न दासी है, न दाना है न खाना है ।। न साधन है न शासन है, न आना है न जाना है । न हाथी है न घोडे हैं, न वैसा अब खजाना है । मयणा तस वयणा सुणी रे लो, हियडे दुःख न मायरे वालेसर। . ढलक ढलक आंस पड़े रे लो, विनवे प्रणमी पाय रे वालेसर ।।५।। ३० वचन विचारी ऊच्चरो रे लो, तुम छो चतुर सुनाण रे वालेसर । एह वचन केमबोलिये रे लो, एणे वचने जीव जाय रे वालेसर॥६॥३०
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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